लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश ने प्रदेश सरकार द्वारा एस्मा के तहत हड़ताल को माह तक निषिद्ध किए जाने को गैर लोकतांत्रिक कदम बताते हुए इसे श्रमिक विरोधी एवं संविधान के मूल भावना के विपरीत बताया है।
यह भी पढ़िये: सपना सप्पू की कातिलाना अदाएं हुई वायरल, युवाओं में मची खलबली, देखिये…
परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने कहा कि वर्तमान समय में कर्मचारी पूरे जी-जान से कोविड-19 संक्रमण से देश की जनता को बचाने एवं उसके उपचार में लगा हुआ है। जबकि सरकार ने कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने के स्थान पर उनके भत्तों और महंगाई भत्ते आदि की कटौती करके उनका मनोबल तोड़ने का ही कार्य किया है। अभी किसी भी संगठन ने हड़ताल की नोटिस नहीं दी है। सरकार ने एस्मा के तहत हड़ताल को निषिद्ध घोषित किया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है की सरकार कर्मचारियों का और बड़ा नुकसान करने की कोई योजना बना रही है।
कर्मचारियों को एस्मा लगाकर भय दिखाना सरकार का अलोकतांत्रिक कदम: अतुल मिश्र
यह भी हो सकता सकता है कि सांकेतिक आंदोलनों को देखते हुए सरकार अगले आंदोलन को कुचलना चाहती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह कहा था कि हड़ताल अलोकतांत्रिक नहीं होती । परिषद के प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि जब मजदूरों की आवाज विरोध के रूप में दबाई जाने लगे तो उनके पास हड़ताल के अलावा कोई रास्ता नहीं होता। सरकार को बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रखना चाहिए हमेशा भय दिखाकर कर्मचारियों को दबाया नहीं जा सकता।
यह भी पढ़ें: कर्मचारियों की उपस्थिति पर सख्ती, ड्यूटी से वापस जाने की समय सीमा निर्धारित नहीं
संविधान की धारा 19 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी बात की अभिव्यक्ति कर सकता है। विरोध करना, अपनी बात कहना प्रत्येक व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है। अगर सरकार कर्मचारियों को का उत्पीड़न ना करें तो कोई भी कर्मचारी कभी हड़ताल या आंदोलन करना नहीं चाहता। परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने कहा कि परिषद का मानना है कि सांकेतिक आंदोलनों के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के बावजूद यदि सरकार मांगों पर ध्यान नहीं देती है तभी हड़ताल जैसी नौबत आती है।
यह भी पढ़िये: मिशन शक्ति: डेढ़ लाख बेटियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे चुकीं ऊषा विश्वकर्मा
परिषद द्वारा कर्मचारियों की जायज़ मांगे जिनपर दो वर्ष पूर्व मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में बनी सहमति व्याप्त है उनका क्रियान्वयन लम्बित है। उसमें प्रमुख मांगे वेतन विसंगति, कैडर पुनर्गठन, केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित योजनाओं व विभागों में कार्यरत संविदा/आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति, सेवा नियमावलियो का प्रख्यापन, कैशलेस इलाज, जिन पर कोई वित्तीय भार भी सरकार को वहन नही करना है उसे भी सरकार पूरा न करके वादाखिलाफी कर रही है।
यह भी पढ़ें: बुराड़ी मैदान तक जाने की अनुमति मिली, पर किसानों ने सिंधु बार्डर पर छेड़ी जंग
कर्मचारियों में सरकार द्वारा अपनाये जा रहे रवैया से काफी आक्रोश है जो निश्चित रूप से एक दिन ज्वालामुखी की भांति फटेगा जिसका दुष्परिणाम सरकार व जनता को भुगतना पड़ेगा। अतः सरकार को कर्मचारियों के साथ लगातार द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से समस्याओं का समाधान करना चाहिए तथा बैठक में हुए समझौते को लागू करना चाहिए और यह समाज ऐसे कानून के माध्यम से उनका मनोबल कमजोर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि कर्मचारी सरकार का एक अभिन्न अंग है और सरकार की नीतियों का संचालन कर्मचारियों के द्वारा ही किया जाता है ।