कांग्रेस नेतृत्व अपनी अदूरदर्शिता से किस तरह पार्टी के लिए समस्याएं पैदा करने का काम कर रहा है, इसका ताजा उदाहरण है पंजाब में मुख्यमंत्री पद का दावेदार तय करने का मामला। पहले उसने मुख्यमंत्री का नाम तय किए बगैर चुनाव में जाने के संकेत दिए। फिर जब मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से होने लगी, तो उसे ऐसा लगा कि यह काम किया जाना चाहिए।

राहुल गांधी ने जल्द ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार का नाम बताने की घोषणा कर दी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं। इसलिए नहीं, क्योंकि यह न केवल हास्यास्पद, बल्कि विचित्र होगा कि करीब साढ़े चार माह पहले मुख्यमंत्री बनाए गए चन्नी को सीएम पद की दौड़ से बाहर कर दिया जाए। इससे कांग्रेस को राजनीतिक रूप से नुकसान होना तय है, क्योंकि वह दलित चेहरे के तौर पर मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
चूंकि चन्नी अपनी परंपरागत सीट के साथ एक अन्य सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए पंजाब की जनता और खासकर वहां के दलित समाज को यही संदेश गया है कि यदि कांग्रेस जीतती है तो वही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन समस्या यह है कि नवजोत सिंह सिद्धू मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने को बेताब हैं। वह केवल बेताब ही नहीं, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व पर इसके लिए दबाव भी बना रहे हैं कि उन्हें ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए।
भले ही नवजोत सिंह सिद्धू ऐसे बयान दे रहे हों कि उनका उद्देश्य केवल पंजाब की सेवा करना है, लेकिन वह जिस तरह बगावती तेवर दिखाने के साथ कांग्रेस नेतृत्व को आगाह भी कर रहे हैं, उससे साफ है कि वह हर हाल में मुख्यमंत्री का चेहरा बनना चाह रहे हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि वह मुख्यमंत्री चन्नी की आलोचना करने और उन्हें अक्षम साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
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सिद्धू के ऐसे तेवरों के लिए कांग्रेस नेतृत्व ही जिम्मेदार है, जिसने उन्हें संतुष्ट करने के लिए एक ओर जहां अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया, वहीं दूसरी ओर उनके हाथों में पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपी। बावजूद इसके उनकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हुई। सिद्धू खुद को ऐसे नेता के तौर पर पेश करने में लगे हुए हैं जैसे पंजाब के अगले मुख्यमंत्री केवल वही हो सकते हैं।
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