अदालत ने मल्लिकार्जुन खड़गे को दी बड़ी राहत, एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने से किया इनकार

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राहत देते हुए दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया है। हालांकि, न्यायिक मजिस्ट्रेट चतिंदर सिंह ने शिकायत का संज्ञान लिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि खड़गे ने 27 अप्रैल 2023 को कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीखी टिप्पणी की थी।

शिकायतकर्ता ने कहा- पुलिस को साक्ष्य एकत्र करने की आवश्यकता नहीं

9 दिसंबर को एक आदेश में अदालत ने यह आरोप दर्ज किया कि कांग्रेस अध्यक्ष ने चुनावी रैली में भाजपा और आरएसएस के खिलाफ टिप्पणी की, जिससे शिकायतकर्ता को परेशानी हुई, क्योंकि वह आरएसएस का सदस्य है।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसके पास आरोपी व्यक्तियों और गवाहों के बारे में पूरी जानकारी है, जिनसे पूछताछ की जानी है, और इसलिए पुलिस को न तो कोई बरामदगी करनी है और न ही कोई साक्ष्य एकत्र करने की आवश्यकता है।

अदालत ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) को लागू करने से किया इनकार

अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 156(3) (संज्ञेय मामले की जांच के लिए पुलिस को मजिस्ट्रेट का निर्देश) के तहत पुलिस द्वारा जांच का आदेश देने के लिए विवेकाधीन शक्ति का उपयोग करने का असली परीक्षण यह नहीं है कि कोई संज्ञेय अपराध किया गया है या नहीं, बल्कि यह है कि पुलिस एजेंसी द्वारा जांच की आवश्यकता है या नहीं।

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास सारी सामग्री उपलब्ध थी और पुलिस को किसी तकनीकी या जटिल जांच की आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने कहा कि कथित आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 156 (3) को लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

‘आरोपी से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं’

इसमें कहा गया है कि कथित आरोपी व्यक्तियों की पहचान सुनिश्चित कर ली गई है और किसी तथ्य को उजागर करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे शिकायतकर्ता की जानकारी में हैं। अदालत के आदेश में आगे कहा गया कि कथित आरोपी से हिरासत में पूछताछ आवश्यक नहीं है।

अदालत ने शिकायत ने किया खारिज

अदालत ने शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के पास सबूत मौजूद हैं और उन्हें इकट्ठा करने के लिए पुलिस की मदद की जरूरत नहीं है। मामले के तथ्य ऐसे नहीं हैं कि राज्य एजेंसी द्वारा विस्तृत और जटिल जांच की जरूरत पड़े।

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हालांकि, अदालत ने इसका संज्ञान लेते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को समन-पूर्व साक्ष्य पेश करने की स्वतंत्रता है। अदालत के आदेश में कहा गया है कि यदि बाद में किसी विवादित तथ्य के कारण जांच की आवश्यकता उत्पन्न होती है तो धारा 202 सीआरपीसी (आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने का स्थगन) के प्रावधान का सहारा लिया जा सकता है।

यह मामला 27 मार्च को पूर्व-सम्मन साक्ष्य के लिए रखा गया था।