कोरोना वैक्सीन को लेकर आ रही खबरों ने भले ही लोगों को राहत की सांस दी ही थी कि इस महामारी के नए स्ट्रेन ने दुनिया को फिर से खौफजदा कर दिया है। कई देशों ने तो इस खौफ ने पाबंदियां लगानी भी शुरू कर दी है। यह नया स्ट्रेन कोई बड़ा विनाशकारी रूप न अख्तियार कर सके, इसको लेकर सभी देश सचेत नजर आ रहे हैं। हालांकि, इसी बीच कुछ मुस्लिम संगठनों के बीच आंशिक रूप से बनकर तैयार हुई कोरोना वैक्सीन को लेकर एक जुबानी जंग शुरू हो गई है।
वैक्सीन को लेकर इस वजह से शुरू हुई बहस
दरअसल, दुनिया के कई देश कोरोना वायरस को ख़त्म करने के लिए वैक्सीन बनाने की कवायद में जुटा है। हालांकि कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस वैक्सीन को लेकर चिंता भी जाहिर की है। इस चिंता की उपज अक्टूबर माह में हुई जब इंडोनेशियाई राजनयिकों और मुस्लिम मौलवियों का एक समूह कोरोना वैक्सीन की डील फाइनल करने के उद्देश्य से चीन पहुंचा। हालांकि, वहां मुस्लिम मौलविय सिर्फ यह तय करने गए थे कि यह वैक्सीन इस्लाम के दृष्टि से स्वीकार की जा सकती है या नहीं। मतलब यह हलाल है या हराम।
दरअसल, मुस्लिम समूहों के लिए चिंता का विषय है कि कोरोना वैक्सीन को बनाने में सुअर के मांस (पोर्क) का प्रयोग हुआ है या नहीं। बताया जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन के रखरखाव और सुरक्षा के लिए जिलेटिन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके इस्तेमाल से वैक्सीन का प्रभाव बना रहेगा। हालांकि, कुछ दवा निर्माता कंपनियों ने इस बात को सिरे से खारिज किया है।
बताया जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन निर्माण में जुटी फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका जैसी कुछ कंपनियों ने दावा किया है कि सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल कोरोना वैक्सीन में नहीं किया गया है। वहीं दूसरी तरफ कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण में जुटी कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं जिन्होंने सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल करने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं कहा है।
दवा कंपनियों के इस दोहरे दावों ने मुस्लिम संगठनों के बीच एक बहस छेड़ दी है कि यह वैक्सीन हलाल है या हराम। मुस्लिम धर्मगुरु इस दोहरे दावों के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में ये चिंता काफी ज्यादा है। कहा जा रहा है कि इंडोनेशिया में हलाल सर्टिफिकेशन के बाद ही कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत दी जाएगी।
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एक न्यूज चैनल के अनुसार, ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का इस मामले में कहना है कि यहूदियों और मुसलमानों के अलावा कई धार्मिक समुदायों में टीके के इस्तेमाल को लेकर कंफ्यूजन बना हुआ है। इनमें सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ सिडनी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद का कहना है कि जिलेटिन के उपयोग पर अब तक हुई कई चर्चा में आम सहमति इस बात पर बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत स्वीकार्य है। अगर वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं किया गया तो नुकसान काफी ज्यादा होगा।
इजरायल की रब्बानी संगठन जोहर के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव इसे जायज करार देते हैं। उनका कहना है कि यहूदी कानून में सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल तभी किया जा सकता है, जब इसके बगैर काम न चल सके। अगर इसे किसी बीमारी में इंजेक्शन के तौर पर दिया जा रहा है और खाया नहीं जाए तो यह ठीक है। इसमें कोई समस्या नहीं है।