रुपये में स्थिरता लाना बना रहेगा चैलेंज, 2026 में RBI के सामने वैल्यूएशन से लेकर ग्रोथ तक कई इम्तिहान

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए साल 2026 भी आसान नहीं रहने वाला। आने वाले वर्ष में केंद्रीय बैंक के सामने सबसे बड़ी चुनौती रुपये की स्थिरता बनाए रखने की होगी। बीते साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के स्तर से नीचे फिसल गया था, जिसने आरबीआई की चिंता बढ़ा दी। 2025 में अपने 90 साल पूरे करने वाले आरबीआई के लिए भी रुपये की गिरती वैल्यूएशन सबसे बड़ी चुनौती बनी रही।

केंद्रीय बैंक का कहना है कि बाजार में उसका हस्तक्षेप किसी तय स्तर को बचाने के लिए नहीं, बल्कि अत्यधिक उतार-चढ़ाव को थामने के लिए होता है। इसके बावजूद रुपये पर दबाव कम नहीं हुआ। कमजोर होती मुद्रा को संभालने के लिए आरबीआई ने 2025 के शुरुआती नौ महीनों में 38 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार बाजार में झोंका। एक्सपर्ट्स का मानना है कि वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते 2026 में भी रुपये का प्रबंधन आरबीआई के लिए कठिन बना रहेगा।

महंगाई रिकॉर्ड निचले स्तर पर, ब्याज दरों में बड़ी कटौती
महंगाई के ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंचने के बीच आरबीआई ने 2025 में मौद्रिक नीति को नरम रखा। छह में से चार मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में रेपो रेट घटाने का फैसला लिया गया। कुल मिलाकर आरबीआई ने चार बार में रेपो रेट में 1.25 प्रतिशत की कटौती की।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस दौर को अर्थव्यवस्था के लिए ‘दुर्लभ रूप से संतुलित आर्थिक समय’ बताया। फरवरी में पहली एमपीसी बैठक से ही उन्होंने ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए दरों में कटौती का सिलसिला शुरू किया, जबकि जून में 0.50 प्रतिशत की सबसे बड़ी कटौती की गई।

चुनौतियों के बावजूद 8% से ऊपर रही विकास दर
गवर्नर पद पर एक साल पूरा होने पर संजय मल्होत्रा ने कहा कि अमेरिका के टैरिफ, भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक अनिश्चितताओं जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत से ऊपर बनी रही, जबकि महंगाई 1 प्रतिशत से नीचे रही। हालांकि उन्होंने संकेत दिए कि आगे चलकर विकास की रफ्तार कुछ धीमी हो सकती है और महंगाई बढ़कर आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य के करीब पहुंच सकती है।

RBI के फैसलों से बैंकों पर दबाव
जीडीपी ग्रोथ के मौजूदा आंकड़ों को लेकर उठ रही चिंताओं पर गवर्नर ने साफ किया कि आरबीआई के फैसले वास्तविक जीडीपी के आधार पर लिए जाते हैं, जो महंगाई घटाने के बाद सामने आती है। वास्तविक महंगाई दर आरबीआई के अनुमानों से कम रहने के कारण केंद्रीय बैंक की भविष्यवाणी क्षमता पर भी सवाल उठे। लगातार दर कटौती और उधारी लागत में गिरावट की उम्मीदों का असर बैंकों पर पड़ा। शुद्ध ब्याज मार्जिन (NIM) घटने और मुख्य आय में कमी से बैंकिंग सेक्टर दबाव में रहा। इसके बावजूद गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ग्राहकों के प्रति संवेदनशीलता और शिकायतों के त्वरित निपटारे को अपनी प्राथमिकता बताया, जो उनके बयानों और भाषणों में साफ झलकता है।

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया सरकारी मंथन के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...