लखनऊ: हाथरस में 2 जुलाई को धार्मिक सभा के दौरान मची भगदड़ की जांच के सिलसिले में बीते गुरूवार को स्वयंभू बाबा सूरजपाल उर्फ ‘भोले बाबा’ और नारायण साकार हरि तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग के समक्ष पेश हुए। इस भगदड़ में कम से कम 121 लोगों की मौत हो गई थी। आयोग ने शहर के जनपथ मार्केट स्थित सचिवालय भवन में भोले बाबा से करीब 135 मिनट तक पूछताछ की।
रिपोर्ट के अनुसार, भोले बाबा ने सत्संग में शामिल 1,100 लोगों के हलफनामे पैनल को सौंपे, ताकि भगदड़ की वजह बनने वाली घटनाओं को स्थापित करने में मदद मिल सके। भोले बाबा भाजपा विधायक बाबू राम पासवान के साथ भारी सुरक्षा वाली एसयूवी में पहुंचे।
पुलिस ने इमारत के चारों ओर 1 किमी के दायरे में इलाके को सील कर दिया था और पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवानों को तैनात किया गया था। भोले बाबा के अनुयायी इलाके में एकत्र हुए, लेकिन उन्हें बैरिकेडिंग के जरिए दूर रखा गया।
भोले बाबा के वकील एपी सिंह ने दावा किया कि भोले बाबा इस घटना में शामिल नहीं हैं। विशेष जांच दल (एसआईटी) ने पहले ही बाबा को किसी भी गलत काम से मुक्त कर दिया है और न्यायिक जांच आयोग ने भी यही किया है।
आयोग ने आश्वासन दिया है कि बाबा को आगे पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इस भगदड़ के पीछे मुगल गढ़ी गांव के निवासी राजेश यादव का हाथ था।
सिंह ने कहा कि यादव ने धमकी दी थी कि अगर उन्हें स्थानीय निकाय का अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वे कार्यक्रम को बाधित करेंगे। उन्होंने कहा कि हमने अधिकारियों और अदालत को यह जानकारी दे दी है। इस संबंध में एफआईआर दर्ज होने के बाद कार्रवाई की जा रही है।
सिंह ने आरोप लगाया कि बाबा के लाखों अनुयायियों की तरह, हमारा भी मानना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और किसी भी निर्दोष को दंडित नहीं किया जाना चाहिए। हाथरस में हुई घटना को छोड़कर उनके किसी भी कार्यक्रम में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। यह सनातन धर्म, बाबा के अनुयायियों को बदनाम करने और उत्तर प्रदेश सरकार को अस्थिर करने की साजिश थी ।
उन्होंने कहा कि हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को न्यायिक आयोग बनाने और घटना के एक दिन बाद घटनास्थल का दौरा करने के लिए धन्यवाद देते हैं। राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने पीड़ितों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की। विपक्षी नेता अखिलेश यादव ने भी 1-1 लाख रुपये दिए।
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उन्होंने कहा कि हमने गवाहों से 1,100 हलफनामे जमा किए हैं, जिनमें घायलों और मृतकों के परिवार के सदस्य शामिल हैं, साथ ही कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर), फोन लोकेशन और आधार कार्ड भी हैं। न्यायिक आयोग इन विवरणों की जांच कर रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है।
सिंह ने कहा कि घटना के पीछे कौन था, यह जानने के लिए गहन जांच की जरूरत है। भोले बाबा ने आयोग से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि दोषियों को सजा मिले।
एफआईआर में भोले बाबा को नहीं बनाया गया था आरोपी
2 जुलाई को भगदड़ के बाद, राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश बृजेश श्रीवास्तव द्वितीय के नेतृत्व में एक न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसमें पूर्व आईएएस अधिकारी हेमंत राव और पूर्व आईपीएस अधिकारी भावेश कुमार सिंह सदस्य थे। आयोग को त्रासदी के कारणों का पता लगाने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के लिए कहा गया है।
इस मामले में 2 जुलाई को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या), 110 (गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास), 126 (2) (गलत तरीके से रोकना), 223 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा) और 238 (साक्ष्यों को गायब करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। एफआईआर में भोले बाबा का नाम आरोपी के तौर पर नहीं था।
न्यायिक पैनल का कार्यकाल 3 सितंबर को समाप्त हो गया था, जिसके बाद सरकार ने कार्यकाल को दो महीने के लिए और बढ़ा दिया।