नई दिल्ली। इस वर्ष की अंतिम अमावस्या यानी पौष अमावस्या शुक्रवार, 19 दिसंबर को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 12 अमावस्या तिथियां होती हैं, लेकिन पौष मास की अमावस्या का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। यह तिथि पितरों की शांति, पुण्य लाभ और सूर्य देव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
ज्योतिष गणनाओं के मुताबिक पौष अमावस्या की तिथि 19 दिसंबर को सुबह 4:59 बजे शुरू होकर 20 दिसंबर को सुबह 7:12 बजे तक रहेगी। इस दिन विशेष रूप से पितृ तर्पण, गंगा स्नान और सूर्य उपासना करने का विधान है।
धर्मनगरी हरिद्वार में गंगा स्नान का महत्व
पौष अमावस्या के दिन हरिद्वार की हर की पौड़ी पर गंगा स्नान को बेहद पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि इस पावन तिथि पर गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है। जो लोग गंगा तट तक नहीं पहुंच सकते, वे घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
पौष अमावस्या का धार्मिक महत्व
हिंदू शास्त्रों के अनुसार पौष अमावस्या पितरों को समर्पित दिन है। इस दिन किए गए जप, तप, दान और पूजा का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। पितरों की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सूर्य उपासना से मिलेगा विशेष फल
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पौष अमावस्या की सुबह स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ होता है। तांबे के लोटे में जल, लाल फूल और रोली डालकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने से आत्मबल बढ़ता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में नए अवसरों के द्वार खुलते हैं।
दान से दूर होते हैं दोष
इस दिन दान का भी विशेष महत्व है। पौष अमावस्या पर अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़ या काले वस्त्र का दान करने से पितृदोष शांत होते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। दान हमेशा श्रद्धा और अपनी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए।
इन नियमों का रखें विशेष ध्यान
पौष अमावस्या के दिन सात्विक आचरण अपनाना जरूरी है। क्रोध, विवाद और नकारात्मक विचारों से दूर रहकर पूजा-पाठ करने से ही उपासना का पूर्ण फल प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार विधि-विधान से की गई पूजा जीवन में शुभ और सकारात्मक परिणाम लेकर आती है।
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