Sarkari Manthan:- एससी/एसटी एक्ट, 1989, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम है, जो अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ जाति-आधारित अत्याचारों को रोकने और दंडित करने के लिए बनाया गया एक कानून है। इसका उद्देश्य इन समुदायों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकना है, यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि इन वर्गों के लोगों को अपमान, उत्पीड़न और भेदभाव से बचाया जाए और उन्हें सामाजिक न्याय मिले। लेकिन अब इस कानून के दुरुपयोग के भी कई मामले सामने आ रहे है और एससी/एसटी एक्ट के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वालो पर कठोर कार्यवाही कर उन्हे जेल भेजा जा रहा है।
हाल ही में राजधानी लखनऊ में दो वकीलों को फर्जी एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराना भारी पड़ गया. कोर्ट ने दोषी वकील लाखन सिंह के खिलाफ 10 साल 6 महीने की कैद और 2.51 लाख रुपए जुर्माना और अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को 5 वर्ष की सजा और ₹45,000 जुर्माने से दंडित किया है। यह फैसला लखनऊ की एससी/एसटी विशेष कोर्ट के न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने दिया है.
इस कानून का मुख्य उद्देश्य
- यह जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के विभिन्न रूपों को रोकने के लिए बनाया गया है।
- यह अत्याचारों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- यह कानून पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करता है।
- यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को आत्म-सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।
- इस कानून के तहत अपराध तब माना जाता है जब सार्वजनिक रूप से किसी एससी/एसटी व्यक्ति का अपमान या गाली देना।
- अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना जिससे किसी एससी/एसटी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे।
- एससी/एसटी के सदस्यों के खिलाफ शत्रुता या दुर्भावना को बढ़ावा देना।
आमतौर पर यह देखा गया है की व्यक्तिगत रंजिश, दबाव बनाने या झूठे आरोप लगाकर निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग किया जाता है। इस दुरुपयोग को रोकने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच और उच्च अधिकारियों से अनुमोदन जैसे उपाय सुझाए हैं। कानून का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति को झूठी शिकायत के लिए सजा का प्रावधान भी है।
इस कानून के दुरुपयोग के तरीके
1-कुछ लोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए इस कानून का सहारा लेते हैं।
2-दबाव डालने और ब्लैकमेल करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
3-निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए जानबूझकर झूठे मामले दर्ज कराए जाते हैं
इस कानून के दुरुपयोग के खिलाफ प्रावधान
1-सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि एससी/एसटी व्यक्तियों के खिलाफ हर अपमानजनक टिप्पणी को इस कानून के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
2- एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच का निर्देश दिया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मामला अधिनियम के दायरे में है या नहीं।
3-गिरफ्तारी से पहले अनुमोदन: सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी के लिए नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति और निजी कर्मचारियों के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति आवश्यक है।
4-यदि यह साबित हो जाए कि शिकायत झूठी थी और जानबूझकर गलत इरादे से की गई थी, तो शिकायतकर्ता के खिलाफ भी आईपीसी की धारा 182 और 211 के तहत कार्रवाई हो सकती है।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine