सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और सड़क, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाया जाना चाहिए। कोर्ट ने आगे जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हों।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने अपराध के आरोपी लोगों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि चाहे वह मंदिर हो या दरगाह, उसे जाना ही होगा। सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। जबकि आरोपियों पर बुलडोजर कार्रवाई करने वाले राज्य अधिकारियों ने कहा है कि ऐसे मामलों में केवल अवैध निर्माण ही ध्वस्त किए जा रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में तीन राज्यों – उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे उनका धर्म या समुदाय कुछ भी हो। बेशक, अतिक्रमण के लिए हमने कहा है… अगर यह सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ, जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र पर है, तो इसे हटाया जाना चाहिए, सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर, यह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती है।”
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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से पूछा कि क्या आपराधिक मामले में आरोपी होना बुलडोजर कार्रवाई का सामना करने का आधार हो सकता है, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बिल्कुल नहीं, बलात्कार या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के लिए भी नहीं। जैसा कि मेरे प्रभु ने कहा कि यह भी नहीं हो सकता कि जारी किया गया नोटिस एक दिन पहले ही अटका हो, यह पहले से ही होना चाहिए।
इससे पहले 17 सितंबर को शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा था कि उसकी अनुमति के बिना एक अक्टूबर तक अपराध के आरोपियों सहित किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाएगा।