कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए मतगणना जारी है और यह लगभग साफ हो गया है कि कांग्रेस सूबे में सरकार बनाने जा रही है। भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों में काफी बुरी तरह हारती दिख रही है, लेकिन इस करारी पराजय में भी उसके लिए एक राहत भरी खबर है। वहीं, कांग्रेस ने भले ही शानदार प्रदर्शन किया है, लेकिन एक ऐसा क्षेत्र है जिसको लेकर उसे थोड़ी चिंता हो रही होगी। चुनाव के जो रुझान सामने आए हैं, उनसे यह भी तय हो गया है कि वोक्कालिगा वोटरों पर जनता दल सेक्युलर की पकड़ अभी भी बनी हुई है।
बीजेपी के वोट शेयर में ज्यादा सेंध नहीं लगी
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दोपहर 12:30 बजे तक जो रुझान सामने आए हैं, उनके हिसाब से सूबे की 224 विधानसभा सीटों में से 124 पर कांग्रेस और 69 पर बीजेपी की बढ़त है, जबकि बाकी सीटों पर JDS और अन्य दल आगे चल रहे हैं। वहीं, वोट शेयर की बात करें तो अभी तक बीजेपी 36.1 प्रतिशत वोटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही है, जबकि कांग्रेस के खाते में 42.9 फीसदी वोट आए हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 36.35 और कांग्रेस को 38.14 फीसदी वोट मिले थे। इस तरह देखा जाए तो वोट शेयर के मामले में अभी तक बीजेपी को कोई खास घाटा नहीं हुआ है।
कांग्रेस को क्यों लेनी होगी इन आंकड़ों की टेंशन
अब सवाल यह उठता है कि अगर कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनावों में इतनी जबरदस्त जीत दर्ज कर रही है, तो उसे वोट शेयर की टेंशन क्यों लेनी चाहिए। दरअसल, 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और अगर कांग्रेस एंटि इनकंबैंसी के बावजूद BJP के वोट शेयर में सेंध नहीं लगा पाई, तो यह निश्चित तौर पर उसके लिए चिंता की बात है। 2018 के विधानसभा चुनावों से सिर्फ एक साल बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद 32 फीसदी के आसपास ही सिमट गई थी।
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क्या बीजेपी ने टाल दी बहुत बड़ी हार?
कर्नाटक में जिस तरह कांग्रेस के हौसले बुलंद थे, उससे पहले ही लग रहा था कि सूबे में सरकार बदल सकती है। यही वजह है कि कांग्रेस के नेता 140 से ज्यादा सीटें हासिल करने की बात कर रहे थे। वहीं, बीजेपी बैकफुट पर थी और अंतिम दौर के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरों ने उसके कार्यकर्ताओं में थोड़ा जोश भर दिया था। माना जा रहा है कि इन दौरों और कांग्रेस द्वारा उठाए गए बजरंग दल के मुद्दे का ही असर है कि बीजेपी सूबे में एक बड़ी हार से बच गई।