राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2023 के अंत तक होने हो लेकिन, प्रदेश की गहलोत सरकार ब्राह्मणों को रिझाने के लिए बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर ली है। गहलोत सरकार अपने सोशल इंजीनियरिंग फाॅर्मूले के तहत आने वाले दिनों में सवर्ण जातियों के उत्थान और प्रगति के लिए नई योजनाएं लागू कर सकती है। सरकार के विप्र कल्याण बोर्ड ने ब्राह्मण समाज की आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति जानने के लिए आम जनता से जानकारी और सुधार के लिए सुझाव मांगे है। इसके लिए बाकायदा विज्ञापन भी जारी किया है। इसके बाद बोर्ड इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा। राजस्थान में पहली बार ऐसा हो रहा कि सरकार ब्राह्मणों की समस्याओं और जीवन स्तर में सुधार के लिए कार्य योजना तैयार कर रही है। विप्र कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष महेश शर्मा के मुताबिक पहले की सरकारों ने ऐसा नहीं सोचा। लेकिन सीएम गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार पहली बार ब्राह्मणों की सुध ली है। सुझाव आने के बाद उसकी रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी जाएगी। जिससे ब्राह्माणों के उत्थान और विकास का काम हो सके।
राजनीतिक लिहाज से बड़ी ताकत है ब्राह्मण समाज
राजस्थान की राजनीति में ब्राह्माणों का अलग वर्चस्व रहा है। राज्य की 50 से अधिक विधानसभा सीटों को यह समाज सीधे तौर पर प्रभावित करता है। ब्राह्मण समाज के वोटों से ही हार-जीत का फैसला होता है। राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। माना जा रहा है कि सरकार के इस प्रयोग के पीछे बड़ा राजनीतिक एजेंरड़ा छिपा है। राजस्थान में ब्राह्माणों की आबादी करीब 10 फीसदी है। प्रदेश के दोनों ही दल कांग्रेस-भाजपा आबादी के हिसाब से टिकट देने में कोताही बरते रहे हैं। 1949 से 1990 के बीच पांच मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज से मिले, लेकिन ब्राह्मणों की आर्थिक स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए कवायद शुरू कर दी है। सीएम अशोक गहलोत ने कैबिनेट में भी ब्राह्मण समाज को खासी तवज्जो दी है। सीएम ने अपनी कैबिनेट में जातीय संतुलन का पूरा ध्यान रखा है।
राम मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस के हाथ से छिटक गए ब्राह्मण
देश के मानचित्र पर राजस्थान का अस्तित्व आने का बाद से ब्राह्मण समाज कांग्रेस का कोर वोट बैंक माना जाता था, लेकिन राम मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस के हाथ से छिटक गया है। कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता हरदेव जोशी रहे हैं। आदिवासी बैल्ट पर हरदेश जोशी का बड़ा प्रभाव रहा। हरदेव जोशी के निधन के बाद कांग्रेस के पास बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं रहा। राम मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस का वोट बैंक भाजपा में शिफ्ट हो गया। तब से लेकर अब तक राज्य का ब्राह्मण समाज का झुकाव विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव भाजपा की तरफ अधिक रहा है।
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EWS आरक्षण में दी थी बड़ी राहत
सीएम अशोक गहलोत ने सवर्णों को लुभाने के लिए कई अहम फैसले लिए है। गहलोत सरकार ने 2019 में राज्य में EWS आरक्षण में बड़ी राहत दी थी। अब केवल वार्षिक आय को ही पात्रता का आधार माना जाएगा। राज्य सरकार अचल सम्पतियों के प्रावधान समाप्त कर दिया। प्रदेश की राजकीय सेवाओं और शिक्षण संस्थाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए परिवार की कुल वार्षिक आय अधिकतम 8 लाख रुपए ही एक मात्र आधार माना जाएगा। सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी थी।