आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव रोचक हो गया है। आजमगढ़ में सैफई परिवार और रामपुर में आजम खां की प्रतिष्ठा दांव पर है। शीर्ष नेतृत्व को आजमगढ़ में प्रत्याशी तय करने में वक्त जरूर लगा, लेकिन इसके पीछे कई वजहें रहीं। हालांकि तमाम चर्चाओं के बाद यहां से पूर्व धर्मेंद्र यादव का नाम तय किया गया।
वहीं, रामपुर में आजम खां के दो शागिर्दों के बीच मुकाबला है। ऐसे में सपा के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में करीब 18.38 लाख मतदाता हैं। इनमें करीब साढ़े तीन लाख यादवों समेत ओबीसी के कुल मतदाताओं की संख्या साढे़ छह लाख से अधिक है।
बता दे कि साढ़े चार लाख दलित, साढ़े तीन लाख मुस्लिम और तीन लाख सवर्ण मतदाता हैं। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ सदर और मेहनगर विधान सभा क्षेत्र हैं। इन सभी सीटों पर सपा के विधायक हैं। विधानसभा चुनाव 2022 में इन पांचों सीटों पर सपा को 4.35 लाख, भाजपा को 3.30 लाख और बसपा को 2.24 लाख मत मिले थे।
वर्ष 2019 में सपा-बसपा का गठबंधन था, जिसमें अखिलेश यादव को 6.21 लाख और भाजपा के दिनेश लाल यादव को 3.61 लाख और सुभासपा को 10 हजार से अधिक वोट मिले थे। स्थिति साफ है कि 2019 में यादव, मुस्लिम के साथ दलित वोट भी सपा के साथ था। इस बार बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतार कर मुस्लिम-दलित गठजोड़ पर दांव खेला है। ऐसे में सपा के सामने मुस्लिम और यादव वोट बैंक को अपने पाले में बनाए रखने और दलितों को जोड़ने की चुनौती है। यही कारण है कि सपा ने पहले दलित उम्मीदवार के रूप में सुशील आनंद को उतारने की तैयारी की थी, लेकिन उनका नाम दो विधान सभा क्षेत्र में होने से नामांकन खारिज होने की आशंका थी। वहीं, स्थानीय सपाइयों में लड़ाई न हो, इससे बचने के लिए सैफई परिवार से धर्मेंद्र यादव को इस बार मैदान में उतारना पड़ा।
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रामपुर लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव भी काफी रोचक होने वाला है। समाजवादी पार्टी ने यहां आजम खां के नजदीकी और नगर अध्यक्ष आसिम रजा को मैदान में उतारा है तो वहीँ भाजपा ने घनश्याम लोधी को टिकट दिया है। सपा से नाता से तोड़कर भाजपा में जाने वाले घनश्याम भी कभी आजम के नजदीकी थे। करीब 16.16 लाख मतदाताओं वाली इस सीट के तहत स्वार, चमरुआ, बिलासपुर, रामपुर और मिलक विधानसभा सीटें हैं।