सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) अधिनियम, 1992 की धारा 2(सी) की वैधता को चुनौती दी गई है। इस धारा को मनमाना और संविधान के विरुद्ध बताया गया है साथ ही धार्मिक और भाषाई आधार पर जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।
मथुरा के कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने वकील आशुतोष दुबे के जरिये यह याचिका दायर की है। उन्होंने 23 अक्टूबर, 1993 को अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर जारी अधिसूचना को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विरुद्ध और मनमाना घोषित करने की मांग की है। अनुच्छेद 32 के तहत यह जनहित याचिका दायर की गई है।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून के जरिये केंद्र ने मनमाने तरीके से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया है जो शीर्ष अदालत के टीएमए पई मामले में फैसले के भी खिलाफ है।
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उन्होंने कहा कि इस कानून के चलते यहूदी धर्म, बहावाद और हिंदू धर्म को मानने वाले लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक होते हुए भी अपने शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते, क्योंकि इन्हें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक माना ही नहीं गया है। इसे संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में प्रदत्त इनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। उक्त राज्यों में इनके अधिकारों का उपयोग बहुसंख्यक समुदायों द्वारा किया जा रहा है, क्योंकि केंद्र ने इन्हें एनसीएम अधिनियम के तहत अल्पसंख्यक नहीं माना है।