वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंट वीक (1 अगस्त से 7 अगस्त) के दौरान पूरी दुनिया में इस बात पर गौर किया जाता है कि किस तरह स्तनपान एक स्वस्थ जीवन की बुनियाद होती है। हाल ही में पहली बार मां बनीं एक्ट्रेस, प्रोड्यूसर और पर्यावरण मित्र दिया मिर्जा ने भी इस मौके पर अपने विचार सामने रखे हैं। एक्ट्रेस कहती हैं, “हमें किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए इस बात को समझने, जानने और मानने के लिए कि स्तनपान की क्रिया कितनी आवश्यक और नेचुरल है। मां बनने के बाद स्तनपान के प्रति मेरी जागरूकता और बढ़ी है। मुझे इस बात का एहसास और अधिक गंभीरता से हो रहा है कि सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान करने की सुरक्षा और सुविधा सबके लिए उपलब्ध नहीं है। अगर एक मां सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी है, किसी खेत पर काम या मजदूरी करती है, ठेला चलाती है या सड़क के किनारे बैठ कर सामान या सब्जी बेचती है तो वो अपने बच्चे का पोषण करने कहां जाए?”
दिया हैरान हैं कि एक तरफ हम मां के गुणगान करते नहीं थकते और दूसरी तरफ किसी सार्वजनिक स्थान पर एक महिला को दूध पिलाते देख उसे प्रताड़ना की नजजर से देखते हैं और उसे लज्जित करते हैं। वे कहती हैं, “बेल्जियम जैसे देशों में सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान एक कानूनी अधिकार है पर अपने देश में पहले हमें वो सोच बदलनी पड़ेगी जो स्तनपान को एक लज्जाजनक कृत्य मानती है, अगर वो सार्वजनिक रूप से किया जाये। बच्चे को दूध पिलाना प्राकृतिक, सहज और पवित्र है पर फिर भी हम इसके साथ गिल्ट, शेम जैसी नकारात्मक भावनाएं जोड़ देते हैं।”
एक्ट्रेस का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और भी अधिक परेशानी से गुजरती हैं क्योंकि वहां मदरहुड और प्रजनन से जुड़ी सही जानकारी का अभाव होता है और इस महामारी ने उनके आर्थिक, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर और भी अधिक बुरा प्रभाव डाला है। वे कहती हैं,”ग्रामीण इलाकों में जन्म के बाद पहले घंटे में स्तनपान के आंकड़ों में गिरावट आयी है हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार स्तनपान जितना शीघ्र किया जाए, बच्चे के स्वास्थ्य के लिए उतना ही अच्छा होता है। WHO ये भी कहता है कि जीवन के पहले छह महीनों में जो बच्चे स्तनपान से वंचित रहते हैं उनके स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक शक्ति पर गहरा असर होता है। मगर इन सब बातों के बारे में शायद बहुत सी ग्रामीण महिलाएं जानती भी नहीं हैं। हमें इस बात को लेकर चिंता करनी चाहिए कि भारत में कुपोषण और शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा हैऔर इसे कम करने के लिए हमें बहुत प्रयास करना चाहिए।”
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दिया मानती हैं कि स्तनपान के लिए महिलाओं को समुदायों, समाज और परिवार में पूरा सहयोग मिलना चाहिए और उन्हें हर तरह की मदद और सही जानकारी भी दी जानी चाहिए। सुविधाओं और जानकारी से वंचित महिलाओं को स्तनपान के सही तरीके समझाने के साथ-साथ पर्याप्त पोषण, मानसिक सामर्थ्य और सुरक्षित जगहें भी मिलनी चाहिए।
दिया कहती हैं, “समय आ गया है कि हम स्तनपान को एक सामान्य क्रिया समझें, क्योंकि दुनिया में अपने शिशु को दूध पिलाने के अधिकार से एक मां को वंचित रखने का किसी को हक नहीं है।”