कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले पिछले महीनों से जारी किसान आंदोलन की अगुवाई करते वाले किसान नेता ने एक बार फिर केंद्र सरकार को बड़ी चेतावनी दी है। दरअसल, बीते रविवार को किसान आंदोलन में हिस्सा लेने वाले संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि मानसून सत्र के दौरान संसद के बाहर प्रतिदिन 200 किसानों का एक समूह प्रदर्शन करेगा। वहीं दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी देश की जनता से बड़ी अपील की है।
किसान नेता विपक्षी दलों के सांसदों से करेंगे मांग
मिली जानकारी के अनुसार, बीते रविवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मानसून सत्र शुरू होने से दो पहले सदन के अंदर कानूनों का विरोध करने के लिए सभी विपक्षी सांसदों को एक चेतावनी पत्र दिया जाएगा। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि हम विपक्षी सांसदों से भी 17 जुलाई को सदन के अंदर हर दिन इस मुद्दे को उठाने के लिए कहेंगे और किसान संसद के बाहर बैठेंगे। हम विपक्षी सांसदों से कहेंगे कि सदन से वॉक आउट कर केंद्र को लाभ न पहुंचाएं। जब तक सरकार इस मुद्दे का समाधान नहीं करती तब तक सत्र को नहीं चलने दें।
किसान नेता राजेवाल ने कहा कि जब तक वे हमारी मांगें नहीं सुनेंगे हम संसद के बाहर लगातार विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक किसान संगठन के पांच लोगों को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए ले जाया जाएगा। संसद का मॉनसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। इसके अलावा किसान संगठनों ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आठ जुलाई को देशव्यापी विरोध का भी आह्वान किया। किसान संगठनों ने लोगों से 8 जुलाई को अपने वाहनों को सड़क पर खड़ा करने की अपील की है। इसके अलावा महिलाओं से भी गैस सिलेंडर को सड़कों पर लाने और विरोध का हिस्सा बनने का आह्वान किया गया है।
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वहीं रविवार को जींद के उचाना में महिला किसानों के धरने को संबोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश में अघोषित आपातकाल है और इस देश की जनता को जागना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि कृषि कानूनों को लागू किया जाता है, तो किसानों को छोटी-मोटी नौकरियां करने के लिए मजबूर किया जाएगा क्योंकि उनकी जमीन बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा छीन ली जाएगी।
किसान नेता राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट के दबाव में काम कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि भले ही केंद्र किसानों से बात कर लें लेकिन उन्हें कॉरपोरेट चला रहे हैं। हमने पहले भी कहा है कि जब भी सरकार तैयार होगी, हम बातचीत के लिए तैयार हैं। लेकिन कृषि मंत्री यह कहकर इसे सशर्त क्यों बना रहे हैं कि वे कृषि कानून वापस नहीं लेंगे?