कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर 49 दिनों से जारी किसान आंदोलन को लेकर देश के सबसे बड़े न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों और मोदी सरकार के बीच जारी विवाद को जड़ से ख़त्म करते हुए उन कानूनों को ही रद्द कर दिया है, जिसकी वजह से यह विवाद हो रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई कमेटी
दरअसल, कृषि कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा जारी किये गए तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुलझाने के लिए एक कमेटी का गठन भी किया है। सुप्रीम कोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, इस कमेटी में कुल चार लोग शामिल होंगे, जिनमें भारतीय किसान यूनियन के जितेंद्र सिंह मान, इंटरनेशनल पॉलिसी हेड डॉ। प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और महाराष्ट्र की शेतकरी संगठन के सदस्य अनिल शेतकारी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई तो अदालत में किसानों की ओर से एमएल शर्मा ने कहा कि किसान कमेटी के पक्ष में नहीं हैं, हम कानूनों की वापसी ही चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आजतक पीएम उनसे मिलने नहीं आए हैं, हमारी जमीन बेच दी जाएंगी। जिसपर चीफ जस्टिस ने पूछा कि जमीन बिक जाएंगी ये कौन कह रहा है?
वकील की ओर से बताया गया कि अगर हम कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट में जाएंगे और फसल क्वालिटी की पैदा नहीं हुई, तो कंपनी उनसे भरपाई मांगेगी। उनके इस डर का समाधान करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि वो ऐसा फैसला जारी कर सकते हैं जिससे कोई किसानों की जमीन ना ले सके।
किसानों के एक वकील ने कहा कि इस तरह का मानना है कि कमेटी मध्यस्थ्ता करेगी। जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि कमेटी मध्यस्थ्ता नहीं करेगी, बल्कि मुद्दों का समाधान करेगी।
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सुप्रीम कोर्ट में अटार्नी जनरल हरीश साल्वे की ओर से कहा गया कि 26 जनवरी को कोई बड़ा कार्यक्रम ना हो, ये सुनिश्चित होना चाहिए। जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि दुष्यंत दवे की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि रैली-जुलूस नहीं होगा। हरीश साल्वे ने इसके अलावा सिख फॉर जस्टिस के प्रदर्शन में शामिल होने पर आपत्ति जताई और कहा कि ये संगठन खालिस्तान की मांग करता आया है। सीजेआई ने कहा कि हम सिर्फ सकारात्मकता को शह दे रहे हैं।