आर.के. सिन्हा
सलमान खुर्शीद को वैसे तो खबरों में बने रहना आता है। पिछले काफी समय से वे खबरों की दुनिया से बाहर थे। उन्हें कोई पूछ नहीं रहा था। वे और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद चुनावों में तो बार-बार शिकस्त खाते ही रहते हैं। इसलिए उन्हें लगा कि क्यों न हिन्दुत्व की तुलना आतंकवादी संगठन आईएसआईएस व बोको हरम से कर दी जाए। इससे वे खबरों में जगह बना लेंगे। सलमान खुर्शीद अपनी नई किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन अवर टाइम’ में यही तो प्लान करते हैं। इस किताब के विमोचन के बाद से वे मीडिया में छाए हुए हैं। उनके मन की मुराद पूरी हो गई।
बेहतर तो यही होगा कि वे हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को भी कोसा करें। उनके खिलाफ अब वे एक के बाद एक किताबें लिखें। उन्हें मीडिया हाथों-हाथ लेगा। जिस सलमान खुर्शीद ने अंग्रेजीदां दिल्ली पब्लिक स्कूल और सेंट स्टीफंस कॉलेज में शिक्षा हासिल की, उसे मदरसा नुमा अंदाज में अब मुसलमानों के हित सता रहे हैं। चलो कभी तो वे अपनों के हुए। वर्ना तो साउथ दिल्ली के जिस विशाल बंगले में वे रहते हैं वहां कोई दीन-हीन मुसलमान कभी घुस भी नहीं सकता। उनके सालाना बिरयानी और आम की दावत में उनके गैर-मुसलमान दोस्त और चाहने वाले ही ज्यादा होते हैं।
सलमान खुर्शीद और नसीरुद्दीन शाह जैसों से सवाल भी नहीं पूछे जाने चाहिए कि वे जो कह रहे हैं उसका आधार क्या है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के नाती सलमान खुर्शीद से एक खबरिया चैनल ने पूछा कि वे बताएं कि हिंदुत्व और आईएसआईएस की तुलना कहां तक वाजिब है। इसे सुनकर वे भड़क गए और इंटरव्यू बीच में ही छोड़ चले गए। अपनी किताब पर विवाद के बाद सलमान खुर्शीद लगातार कह रहे हैं कि वे चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन जब खबरिया चैनल ने उनसे सवाल किए तो वे भाग खड़े हुए। जब उनसे हिंदुत्व की आतंकवादी संगठनों से तुलना करने पर सवाल किया गया तो वे इंटरव्यू बीच में ही छोड़ गए। सबसे अच्छा तरीका तो यह होता कि उनसे कोई सवाल-जवाब नहीं करता। उन्हें चाहे बोलने की छूट दे दी जाए। वे बोलते-लिखते रहें। कम से कम देश को पता तो चले उनके और उन जैसों के चरित्र के बारे में।
उन्हें पता है या नहीं, मैंने तो उनके नाना और बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉक्टर जाकिर हुसैन को स्वयं अपनी आँखों से देवराहा बाबा के मचान के सामने बैठकर “राम-राम” जपते देखा है। बात 1962 के फरवरी-मार्च की है। मैं अपने पिताजी के साथ देवराहा बाबा के मचान के सामने बैठा था तभी मोटर बोट की आवाज आई जो उन दिनों एक अजूबा चीज थी। जैसे ही राज्यपाल जाकिर हुसैन मोटर बोट से उतर कर मचान की ओर बढ़े, देवराहा बाबा ने मचान से ही कहा, “लाट, बच्चा आ गया। वहीं बैठो और राम-राम जपो। मैं भक्तों की इस भीड़ को निपटाता हूँ।” राज्यपाल महोदय गंगा की रेत पर बैठकर राम-राम जाप करने लगे। जब बाबा ने लगभग पूरी भीड़ को निपटा दिया तब उन्होंने राज्यपाल महोदय को बुलाया। कुछ फल दिये। आशीर्वाद दिया और कहा, “ लाट बच्चा, रामजी तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हैं। तुम अब दिल्ली जाने की तैयारी करो।” इसके कुछ दिनों बाद यह खबर आ गई कि वे उपराष्ट्रपति बनने वाले हैं।
दरअसल सलमान खुर्शीद से कहा गया कि 2014 से 2018 के बीच 19 देशों में आईएसआईएस ने 2000 से ज्यादा लोगों को मार दिया, उस आतंकी संगठन से आप हिंदुत्व की तुलना कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब देने की बजाय सलमान खुर्शीद ने हाथ जोड़ लिए और नमस्कार कह कर इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर चलते बने। यह वही सलमान खुर्शीद हैं जिन्होंने 10 फरवरी 2012 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कांग्रेस की एक रैली को संबोधित करते हुए सार्वजनिक रूप से यह दावा किया था कि “मैंने जब बटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें सोनिया गाँधी को दिखाईं तब उनकी आँखों से आंसू गिरने लग गये और उन्होंने मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से बात करने की सलाह दी।”
जरा गौर करें कि सलमान खुर्शीद की किताब का विमोचन करने वालों में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी मौजूद थे। दिग्विजय सिंह तो पहले ही कह चुके हैं कि जब केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार आएगी तो वे संविधान के अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल कर देंगे। उन्होंने कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। जिस अनुच्छेद 370 को हटाने के सवाल पर सारा देश एक है, उसे फिर से बहाल करने का दिग्विजय सिंह वादा कर रहे हैं। हालांकि उनका सपना कभी पूरा नहीं होगा।
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सलमान खुर्शीद की किताब के विमोचन के मौके पर पी. चिदंबरम भी मौजूद थे। सलमान खुर्शीद और दिग्गी राजा की तरह उनका भी कोई जनाधार नहीं है। कांग्रेस में इस तरह के कागजी और छपास वाले नेताओं की भरमार है। ये लुटियन दिल्ली के बड़े विशाल सरकारी बंगलों में रहकर राजनीति करते हैं। इनमें से कुछ मालदार कमाऊ वकील हैं। वकालत से थोड़ा बहुत जब वक्त मिल जाता है, तो सियासत का खेल भी करने लगते हैं। इन्हें लगता है कि खबरिया चैनलों की डिबेट में आने से ही वे पार्टी की महान सेवा कर रहे हैं। ये जनता के बीच उनके सवालों पर कभी आंदोलन नहीं करते, कभी जेल यात्राएं नहीं करते।
सलमान खुर्शीद से ही पूछ लीजिए कि क्या कभी उन्होंने देश भर के वक्फ बोर्ड में फैली करप्शन के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनसे पूछिए कि मुसलमानों में ट्रिपल तलाक के मसले पर उनकी क्या राय थी। उनसे जरा यह भी जान लें कि क्या उन्होंने कभी पसमांदा मुसलमानों के हक में कोई आंदोलन चलाया? दरअसल देश का पूरा मुस्लिम समाज अशराफ, अजलाफ और अरजाल श्रेणियों में बंटा है। शेख, सैयद, मुगल और पठान अशराफ कहे जाते हैं। अशराफ का मतलब है, जो अफगान-अरब मूल या हिन्दुओं की अगड़ी जातियों से धर्मांतरित होकर मुसलमान बने हैं, वे ही अशराफ कहे जाते हैं। अजलाफ हिन्दुओं की पेशेवर जातियों से धर्मांतरित मुसलमानों का वर्ग है। एक तीसरा वर्ग उन मुसलमानों का है, जिनके साथ शेष मुसलमान भी संबंध नहीं रखते। यहां तक कि वे तो मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तान का उपयोग भी नहीं कर सकते हैं। दलित मुसलमानों के जनाजे का नमाज पढ़ने से भी ज्यादातर मौलवी इनकार कर देते हैं। इन्हें ही पसमांदा मुसलमान कहते हैं। यही मुसलमानों का 85% उपेक्षित वर्ग है।
भारतीय मुस्लिम समाज भी जाति के कोढ़ से मुक्त नहीं है। हालांकि कहने को इस्लाम में जातिवाद नहीं है। क्या सलमान खुर्शीद या नसीरुद्दीन शाह ने मुसलमानों में जाति व्यवस्था के खिलाफ कोई सशक्त आंदोलन छेड़ा, नहीं न? भारत में मुसलमानों का यह अभिजात समूह है जिसने सिर्फ मौज की है। ये सिर्फ हकों की बातें करते हैं। इन्हें कर्तव्य को याद दिलाते ही पसीना आने लगता है। सलमान खुर्शीद इसी खाए-पिए-अघाए रईस मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं। समझ नहीं आता कि इनकी देश और समाज विरोधी नियमित हरकतों पर कुछ लोग क्यों इतने परेशान हो जाते हैं। इन्हें समझना होगा कि सलमान खुर्शीद जैसों को हिन्दू और हिन्दुत्व में यकीन रखने वाला भारत हर तरह की मौज करने की छूट देता ही रहेगा। इसलिये वे ऐसी हिमाकत करते रहते हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)