कभी आपने लोगों को दर्द से चीखते देखा होगा, कभी अचनाक पैरालाइसिस हो गया होगा, लेकिन जब ऐसे मरीजों को अस्पताल लेकर जाते हैं तो उनकी सारी जांचें नॉर्मल आती हैं। ऐसे लक्षणों को साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर कहा जाता है। 2019 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में भूत विद्या का एक कोर्स शुरू किया गया था। यह कोर्स भी साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए ही शुरू किया गया था।
क्या है साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर
डॉक्टर्स का कहना है कि साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर एक मनोरोग है। उन्होंने बताया कि साइकोसोमैटिक में दो शब्द मिले हुए हैं। साइको से मतलब है हमारा मानसिक स्वास्थ्य और सोमा से मतबल है बॉडी। यहां पर बॉडी का मतलब है हमारा शारीरिक स्वास्थ्य। जब मानसिक तनाव शारीरिक लक्षणों का रूप लेने लगे तो उसे साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहते हैं। इसे हिंदी में मनोदैहिक विकार कहते हैं। इस बीमारी का रिश्ता एक न्यूरोलोजिस्ट से ज्यादा साइकोलोजिस्ट का है। यह परेशानी न्यूरो से ज्यादा साइकोलोजिकल है। इसमें न्यूरो का इतना ही काम होता है कि उनके पास अगर ऐसा कोई पेशेंट आता है तो वह लक्षण देखने के बाद से बताते हैं कि आपको साइकोलोजिस्ट की जरूरत है।
महामारी में बढ़े साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के मरीज
डॉक्टर्स का कहना है कि आज ओपीडी में लगभग 30 से 40 फीसद मरीज साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के होते हैं। और कोरोना महामारी में ये बीमारी तेजी से बढ़ी। इससे पहले इटली में एक शोध भी किया गया था जिसमें यह बात निकलकर आई थी कि कोरोना में मनोरोग तेजी से बढ़े हैं।
कोरोना महामारी के समय में साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के मामले बढ़े हैं। किसी की सांस फूलने का मतलब हर व्यक्ति समझ ले रहा है कि उसे कोरोना हो गया है, अगर किसी को घबराहट हो रही है तो उसे लग रहा है कि उसका बीपी कम हो रहा है। जबकि उनकी शारीरिक जांचें नॉर्मल आती हैं। महामारी में ये समस्या तेजी से बढ़ी है।
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के लक्षण
1. शरीर के किसी भी हिस्से में अचानक दर्द होना
2. मरीज का अचानक पैरालाइज हो जाना
3. मन में नकारात्मक विचार आना
4. नींद न आना
5. ऐसे लक्षण दिखाई देना जिन्हें परिभाषित नहीं कर सकते
6. शरीर में झुनझुनी
7. हृदय धड़कनें बढ़ना
ये सभी लक्षण मरीज में शारीरिक रूप से दिखाई देते हैं। इसमें जो लक्षण दिखाई देते हैं मरीज उसकी दवा करवाता है। सभी जांचें नॉर्मल आती हैं। ऐसे बहुत से लोग हमारे आस पास होते हैं जिनमें मानसिक तनाव होता है और शारीरिक लक्षणों में दिखाई देते हैं। तो वहीं, लोग मनोचिकित्सकों को पागलों के डॉक्टर समझते हैं। इस वजह से मनोरोगों को गंभीर रूप से नहीं लेते हैं। ऐसे में लोग कई साल तक अन्य डॉक्टरों के पास चक्कर लगाते रहते हैं और बीमारी बढ़ती रहती है।
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के कारण
-बाजारवाद का बढ़ना
-मानसिक तनाव
-स्क्रीन एक्सपोजर बढ़ना
-तनाव प्रबंधन की दक्षता का न होना
-एग्जाइटी
-डिप्रेशन
-मन का अंतरद्वंद्व
-कॉन्फीडेंस में कमी
-लाइफस्टाइल का बिगड़ना
-एक्सरसाइज की कमी
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का इलाज
-काउंसलिंग
-अच्छी नींद लेना
-योग व एक्सरसाइज
-लोगों से बातचीत
साइकोसोमैटिक के मरीजों के लिए जरूरी बातें
-साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के मरीज अपने डॉक्टरों पर विश्वास करें।
-गूगल डॉक्टर से बचें।
-बार-बार फिजिशियन न बदलें।
-अन्य जांचें कराएं
-मनोचिकित्सक जो दवा देते हैं उन्हें नियमित तौर पर लेते रहें-दवाओं पर आशंका न करें। मनोरोगों के स्टिग्मा को बाहर निकालें।
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मनोरोग एक गंभीर बीमारी है। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि मनोरोगों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसके बजाए उन मनोरोगों को भूत-बाधा कहकर लोगों को प्रताड़ना दी जाती है। ऐसी प्रैक्टिसिस से बचना चाहिए और मनोचिकित्सकीय इलाज करवाना चाहिए।