छठ महापर्व के दूसरे दिन गुरुवार को लखनऊ में व्रतियों ने पूरे दिन का निर्जल उपवास किया। सूर्यास्त के बाद चावल, गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर रसियाव (खीर) बनाया तथा खरना किया। इसके बाद अगले 36 घंटों के निर्जला व्रत आरम्भ हुआ। रात में छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ‘ठेकुआ’ बनाने की तैयारियां भी होती रहीं। अब शुक्रवार को सायंकाल अस्त होते सूर्य को तथा शनिवार को उदित होते सूर्य को अघ्र्य दिया जायेगा।
घाटों पर तैयारियां पूरी: झूलेलाल घाट पर बांटे जायेंगे मास्क
अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास के अध्यक्ष परमानन्द पाण्डेय ने कहा कि सभी व्रतियों से कोविड नियमों को पालन करते हुए आयोजन में सम्मिलित होने की अपील की गई है। पूजा स्थल पर न्यास द्वारा मास्क का वितरण भी किया जायेगा। व्रतियों के लिए निःशुल्क चाय के वितरण का भी प्रबन्ध किया गया है। उन्होंने बताया कि न्यास के कई पदाधिकारी अपने घरों पर ही अर्घ्य देंगे।
गूँजेंगे छठ के पारम्परिक गीत
न्यास के उपाध्यक्ष दुर्गा प्रसाद दुबे ने बताया कि कोविड के साये में इस बार न्यास द्वारा करायी गई आनलाइन छठ गीत कार्यशाला के साठ प्रतिभागी कलाकारों की प्रस्तुति नहीं कराई जा रही है। किन्तु आनलाइन छठ गीतों की प्रस्तुतियां होंगी।
झूलेलाल घाट पर हुई भोजपुरी काव्य संगोष्ठी
हनुमान सेतु के निकट झूलेलाल वाटिका स्थित गोमती तट पर गुरुवार को अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास द्वारा भोजपुरी कवि गोष्ठी हुई। वरिष्ठ भोजपुरी कवि गिरिजाशंकर दुबे ‘गिरिजेश’ की अध्यक्षता में हुए काव्य संगोष्ठी में अधीर पिण्डवी, साधना मिश्रा, सुभाष चन्द्र रसिया, सौरभ कमल, अजय श्री आदि ने काव्य पाठ किया। संचालन युवा कवयित्री सीमा गुप्ता ने किया। आयोजन में न्यास के अध्यक्ष परमानन्द पाण्डेय, उपाध्यक्ष दुर्गा प्रसाद दुबे एवं दिग्विजय मिश्र, संयुक्त सचिव राधेश्याम पाण्डेय, महासचिव एस.के.गोपाल, विशेष कार्याधिकारी अखिलेश द्विवेदी, दशरथ महतो, अनिल पांडेय, राकेश तिवारी, पुनीत निगम, उमाकान्त मिश्र, प्रसून पाण्डेय आदि लोग सम्मिलित हुए।
सूर्य और छठी देवी में भाई-बहन का सम्बन्ध
भोजपुरी लेखक एस. के. गोपाल ने बताया कि दंतकथाओं में सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है। कहीं-कहीं प्रचलित कथाओं में सूर्य और छठी मैया का संबंध मां-बेटे का है। सूर्य को शंकर और पार्वती का पुत्र माना जाता है। एक बार सूर्य पर बड़े राक्षस का संकट आ गया था। शंकर और पार्वती ने गंगा नदी से विनती की कि वह सूर्य की रक्षा करे। राक्षस से बचाने के लिए गंगा ने सूर्य को अपनी गोद में समेट लिया। फिर भी वह बचा नहीं पाई और सूर्य को राक्षस उठा ले गया। इसके बाद गंगा को सूर्य से पुत्रमोह हो गया और वह सूर्य को अपना बेटा बनाने की कामना से भर उठी। गंगा का सूर्य के प्रति इतना मोह पार्वती को पसंद नहीं आता है। लेकिन सूरज के मोह के कारण गंगा मां के रूप में पूजी जाने लगती हैं। गंगा नदी में खड़े होकर उसके बेटे को अघ्र्य दिया जाता है। गंगा के साथ ही दूसरी नदियों और जल के अन्य स्रोतों में भी सूर्य को अघ्र्य देने की परंपरा शुरू हुई।
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अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य (शुक्रवार को)
छठ पर्व का तीसरा प्रमुख दिन संध्या अघ्र्य के नाम से जाना जाता है। पूरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारियाँ करते हैं। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे-ठेकुआ (आटा व गुड़ से तला हुआ विशेष पकवान), चावल के लड्डू (कसार या कचवनिया) आदि बनाया जाता है। ‘ठेकुआ’ स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित होते हैं। आटे में गुड़ और देशी घी का मोएन देते हुए दूध में गूँथा जाता है तथा देशी घी में बनाया जाता है। यह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोककर बनाया जाता है। इन पकवानों के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल-फल, सब्जी, मसाले व अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू (बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैं।