लखनऊ। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सदन में अपना लगातार तीसरा बजट प्रस्तुत किया गया। इस बजट से प्रत्येक सेक्टर के लोगों को काफी उम्मीदें थी लेकिन बजट से अधिकांश लोगों को निराशा ही हाथ लगी है। विशेषकर कर्मचारी वर्ग इस बजट से बहुत ही निराश है।
कर्मचारियों के लिए बजट रहा पूर्णतया निराशाजनक, मार्च में की आंदोलन की घोषणा
स्वास्थ्य सेक्टर का बजट तो बढ़ाया, पर पैसे की व्यवस्था कैसे होगी इसका जिक्र नहीं
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने केंद्रीय बजट पर त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। उन्होंने बताया कि कर्मचारियों को उम्मीद थी कि इस बजट में कर्मचारियों का सीज किया गया महंगाई भत्ता रिलीज करने, इनकम टैक्स की सीमा बढ़ाए जाने तथा स्वास्थ्य कर्मी जोकि कोरोना के फ्रंट लाइन योद्धा के रूप में काम किए हैं, उनके लिए कुछ बेहतर करने की घोषणा जरूर होगी।
स्वास्थ्य सेक्टर का बजट तो बढ़ाया, पर पैसे की व्यवस्था कैसे होगी इसका जिक्र नहीं: विशेषकर आउट सोर्स एवं संविदा कर्मियों के नियमितीकरण की कोई योजना सरकार जरूर लेकर आएगी, लेकिन कर्मचारियों को बजट से घोर निराशा हुई है। बजट में इस तरह की कोई भी घोषणा नहीं की गई है । 75 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने से छूट दी गई है लेकिन 75 वर्ष से अधिक उम्र के पेंशन धारकों को रिटर्न भरने से छूट इस राइडर के साथ दी गई है कि उनके पास इनकम का कोई अन्य जरिया ना होने पर ही उनको इसका लाभ मिल सकेगा।
पेंशन से मिलने वाली पूरी धनराशि टैक्स से मुक्त होनी चाहिए। पेंशन धारक के पास पेंशन के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं होता है ऐसे में रिटायरमेंट के बाद मिलनेवाली वाली पूरी धनराशि कर मुक्त होनी चाहिए।
बजट में कोरोना वैक्सीनेशन पर 35 हजार करोड़ ,हेल्थ सेक्टर में 2.38 हजार करोड़, परिवहन में 1.18 हजार करोड़, पब्लिक बस के लिए 18000 करोड की की घोषणा की गई है लेकिन यह धनराशि किस श्रोत से आएगी इसका कोई जिक्र नहीं है ।
स्वास्थ्य सेक्टर का बजट तो बढ़ाया, पर पैसे की व्यवस्था कैसे होगी इसका जिक्र नहीं: सरकार ने निजीकरण पर काफी जोर दिया है। बंदरगाह ,हवाई अड्डा, रेलवे, चिकित्सालय, परिवहन, शिक्षा , बिजली जैसे विभागों में सरकार निजीकरण की राह पर चल पड़ी है। 30000 प्राइवेट बसें परिवहन में लगाए जाने का की घोषणा भी बजट में है। स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, बिजली जैसे विभागों में निजी करण को बढ़ावा देने से पहले आम जनता की सुविधाओं के बारे में सोचा जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में पहले से ही कई निजी कंपनियां काम कर रही हैं जिनका कार्य एवं अनुभव कतई अच्छा नहीं रहा है फिर भी सरकार निजीकरण की तरफ बढ़ रही है।
वित्तीय घाटा 6.8% करने का प्रस्ताव है जोकि पिछले वर्ष के वित्तीय घाटे से 1.7% कम है लेकिन यह घाटा कैसे कम किया जाएगा इसका भी जिक्र नहीं है। बजट में डेढ़ लाख करोड़ जॉब्स की भी घोषणा की गई है लेकिन सरकारी प्रतिष्ठानों में पहले से ही लाखों पद खाली पड़े हुए हैं, उन पदों को विगत वर्षों में भरा नहीं जा सका है ऐसी स्थिति में नौकरियों की घोषणा मात्र बजटीय हिस्सा होकर ही न रह जाए यह आशंका भी है। बीमा क्षेत्र में एफडीआई 49% से बढ़ाकर 74% हो जाने से बीमा क्षेत्र पर पूरी तरह से विदेशी कंपनियों का कब्जा हो जाएगा हालांकि सरकार का कहना है कि बोर्ड में भारतीय सदस्य ही होंगे लेकिन यह तो समय ही बताएगा कि 74% भागीदारी वाला 26% भागीदारी वाले का का प्रशासन कैसे स्वीकार कर सकता है ।
स्वास्थ्य सेक्टर का बजट तो बढ़ाया, पर पैसे की व्यवस्था कैसे होगी इसका जिक्र नहीं: बजट में डिजिटल इंडिया , डिजिटल पेमेंट पर जोर दिया गया है ।मोबाइल फोन, मोबाइल उपकरण पर कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई है जिससे मोबाइल महंगा हो जाएंगे । यह डिजिटल पेमेंट के लिए अड़चन पैदा कर सकता है क्योंकि मोबाइल आम आदमी की क्रय क्षमता से बाहर हो सकता है। बजट में डिविडेंड को आयकर से मुक्त किया जाना राहत की बात है। किसानों की आय दुगुना करने की विगत आम बजट की घोषणा को पुनः दोहराया गया है। उन राज्यों में जहां चुनाव प्रस्तावित है बजट में खजाना खोल दिया गया है ।कुल मिलाकर बजट कर्मचारियों के लिए तो निराशाजनक है ही, आम आदमी के दृष्टिकोण से भी बजट में कुछ खास नहीं है।