सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले तलाक-ए-हसन और दूसरे प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
गाजियाबाद की रहने वाली मुस्लिम महिला बेनजीर ने दायर याचिका में मांग की है कि मुस्लिम लड़कियों को भी बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए। वकील अश्विनी उपाध्याय के जरिये दाखिल याचिका में बेनजीर ने बताया है कि उनकी 2020 में दिल्ली के यूसुफ नकी से शादी हुई थी। उनका सात महीने का बच्चा भी है। दिसंबर 2021 में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया था। पिछले पांच महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा। अब अचानक अपने वकील के जरिये डाक से एक पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नजर में समानता और सम्मान से जीवन जीने जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दिया जाए। याचिका में शरीयत कानून की धारा 2 को रद्द करने का आदेश देने की मांग की गई है। याचिका में डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की गई है।
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उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को एक साथ तीन तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र ने तीन तलाक को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अभी भी बरकरार हैं। इनके तहत पति एक महीने के अंतर पर तीन बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है।