सुप्रीम कोर्ट पेगासस जासूसी मामले पर 27 अक्टूबर को फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी। सुनवाई के दौरान केंद्र ने विशेषज्ञों की एक निष्पक्ष कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया था, जो कोर्ट की निगरानी में काम करेगी। कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह अपनी तरफ से कमेटी का गठन करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को दिया था केंद्र को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने 13 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र ने निष्पक्ष कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया था, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करेगी। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था याचिकाकर्ता चाहते हैं सरकार लिख कर दे कि वह सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है या नहीं। हमारा मानना है कि हलफनामा दाखिल कर इस पर बहस नहीं कर सकते। आईटी एक्ट की धारा 69 सुरक्षा के लिहाज से सरकार को निगरानी की शक्ति देती है। हम निष्पक्ष कमेटी बनाएंगे। तब चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा था कि आप कह रहे हैं कि इस पर याचिका दायर नहीं हो सकती है। तब मेहता ने कहा था कि याचिका हो सकती है, पर सार्वजनिक चर्चा नहीं। हम देश के दुश्मनों तक ऐसी जानकारी जाने नहीं दे सकते हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि हमने कहा था कि संवेदनशील जानकारी हलफनामे में न लिखी जाए। बस यही पूछा था कि क्या जासूसी हुई, क्या सरकार की अनुमति से हुआ।
सुनवाई के दौरान वकील श्याम दीवान ने कहा था कि आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ संदीप शुक्ला के हलफनामा का उदाहरण देते हुए बताया था कि जिसकी जासूसी हुई, उसे पता ही नहीं चल पाता। दीवान ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ आनंद वी ने भी हलफनामा दाखिल किया है। बताया है कि इससे प्रभावित व्यक्ति के फोन में दूसरा सॉफ्टवेयर भी डाला जा सकता है। पत्रकार परांजय गुहा के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि सिविल प्रोसीजर कोड कहता है कि प्रतिवादी अगर किसी आरोप से इनकार करे तो वह स्पष्ट हो। सरकार आरोप को बेबुनियाद बता रही है, फिर कमेटी बनाने का भी प्रस्ताव दे रही है। द्विवेदी ने कहा था कि इसका इस्तेमाल सरकार ही कर सकती है। अभिव्यक्ति को प्रभावित किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके साफ किया था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से संवेदनशील किसी भी बात के लिए सरकार को बाध्य नहीं कर रहा। कोर्ट ने कहा था कि हम नोटिस बिफोर एडमिशन जारी कर रहे हैं, कमेटी के गठन पर बाद में फैसला लेंगे।
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कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या आप और कोई हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहते। तब मेहता ने कहा था कि भारत सरकार कोर्ट के सामने है। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार यह सब बताए कि वह कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करती है, कौन सा नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह सब हलफनामे के रूप में नहीं बताया जा सकता है। सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा था कि सरकार को शपथ लेकर बताना था कि क्या उसने कभी भी पेगासस का इस्तेमाल किया। इस बिंदु पर कोई साफ बात नहीं कही है। सिर्फ आरोपों का खंडन कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में पेगासस की जांच की मांग करते हुए पांच याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिका दायर करने वालों में वकील मनोहर लाल शर्मा, सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास, वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार, परांजय गुहा ठाकुरता समेत पांच पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड की याचिका शामिल है।