राजद्रोह कानून की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लिया फैसला, केंद्र को थमाई नोटिस

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 यानी की राजद्रोह के अपराध को लेकर मोदी सरकार पर कई तरह के आरोप लग चुके हैं। इसके अलावा इस अपराध की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार से जवाब मांगा है। बीते तीन महीनों में इस तरह की यह दूसरी याचिका है जो सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है।

सुप्रीम कोर्ट में दो पत्रकारों ने दायर की याचिका

मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका बार दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा और कन्हैया लाल शुक्ला ने दायर किया था। उन्होंने अपनी इस याचिका में आईपीसी की धारा 124ए पर काफी सवाल खड़े किये हैं। बीते शुक्रवार को जस्टिस यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय बेंच ने याचिका पर सुनवाई की, जिसके बाद अदालत की तरफ से केंद्र को नोटिस भेजा गया है।

दरअसल, मणिपुर के वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के शुक्ला दोनों पर आईपीसी की धारा 124ए के तहत मुकदमा दर्ज है। इस दोनों पत्रकारों का कहना है कि यह प्रावधान अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का उल्लंघन करता है। राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र के खिलाफ सवाल उठाने पर उनके खिलाफ धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है। इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कार्टून शेयर करने और टिप्पणी करने को लेकर मामला दर्ज किया गया है।

इन दोनों पत्रकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि साल 1962 के बाद लगातार 124ए का दुरुपयोग हुआ है। साथ ही यह भी तर्क दिया गया है कि इस धारा की वजह से लोकतांत्रिक आजादी पर अस्वीकार्य प्रभाव पड़ता है। याचिका में कहा गया है कि अन्य उपनिवेशवादी लोकतंत्रों में भी राजद्रोह को अपराध के तौर पर रद्द किया गया है।

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याचिका में बताया गया है कि इसे अलोकतांत्रिक, गैरजरूरी बताकर इसकी निंदा की गई है। इस दौरान याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 1962 केदार नाथ सिंह बनाम स्टेट ऑफ बिहार का भी हवाला दिया गया है। खास बात है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इसी तरह की एक याचिका खारिज की थी। उस समय तीन वकीलों ने प्रावधान को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।