उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच क्या कोई गुप्त गठबंधन है? ये सवाल इन दिनों यूपी की सियासी फिजाओं में खूब चर्चा में है। जिसके पीछे की वजह है कांग्रेस द्वारा समाजवादी पार्टी के दो दिग्गज नेताओं का वॉकओवर दिया जाना। कांग्रेस ने जसवंतनगर सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। इस सीट से अखिलेश के चाचा और सपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव चुनावी मैदान में हैं। जसवंतनगर सीट उनकी परंपरागत सीट है और वो यहीं से विधायक भी हैं। जबकि इसके अलावा कांग्रेस ने करहल सीट से भी उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। कांग्रेस की तरफ से पहले तो करहल से उम्मीदवार का ऐलान किया गया था लेकिन उस वक्त तक अखिलेश के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं हुई थी। लेकिन जैसे ही सपा की तरफ से अखिलेश यादव के यूपी के करहल सीट से उतरने की बात सामने आई कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार को पर्चा भरने से मना कर दिया।
बता दें कि समाजवादी पार्टी रायबरेली और अमेठी की सीटों पर गांधी परिवार के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारती है। जिसके बाद से ये चर्चा होने लगी कि कांग्रेस का ये केवल राजनीतिक शिष्टाचार है या इस फैसले के पीछे कोई गुप्त गठबंधन है। हालांकि इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत का कहना है कि राजनीतिक सम्मान के तौर पर सपा ने कभी भी सोनिया गांधी या राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी या रायबरेली से उम्मीदवार नहीं उतारा। ऐसे में जब अखिलेश यादव चुनाव लड़ना चाहते हैं तो हम उन्हें सम्मान दे रहे हैं।
बेशक कांग्रेस ने दो सीटों पर समाजवादी पार्टी के समर्थन में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 113 सीटों पर कांग्रेस चुनावी मैदान में है। कांग्रेस का मकसद यूपी की राजनीति में बीजेपी को शिकस्त देना है। समाजवादी पार्टी का भी यही मकसद है। ऐसे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच कोई समझौता होता है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। कहा जा रहा है कि ये सब बस भविष्य के विकल्प तय करने के लिए है।