राज ठाकरे का राजनीति में कमबैक इन दिनों खूब सुर्खियों में है। ये कमबैक कोई चुनाव जीतने की वजह से नहीं हुआ है। राज ठाकरे का कमबैक महाराष्ट्र की दूसरी पार्टियों की वजह से हुआ है। जो पार्टियां राज के बयानों पर रिएक्ट तक नहीं करती थी। वो उन्हें भाव न देने की कोशिश में भाव दे रहे हैं। ठाणे में राज ठाकरे ने तलवार लहराई, सनसनी पैदा करने वाले बयान दिए। बदले बदले से सरकार नजर आते हैं, आज कल बदले बदले से अंदाज नजर आते हैं। राज ठाकरे इन दिनों जहां जाते हैं अपना रिकॉर्ड लाउड टोन में बजाते हैं। यू तो उनकी पार्टी अल्ट्रा नेशनलिस्ट कहलाती है। हिंदुत्व और मराठा क्षेत्रवाद को साथ ले जाती है। मगर उनके सुर में इतनी तुरखी पहली बार देखी जा रही है। 2006 में शिवसेना से बकावत के बाद वो सबको साथ लेकर चलने की बात करते थे। अब ये बदला हुआ तेवर राज साहब के कुछ साथियों को भी रास नहीं आ रहा है। उम्मीद थी की राज ठाकरे ठाणे की रैली में पिक्चर क्लियर करेंगे। मगर अजान के सामने हनुमान चालीसा की बात करने वाले राज अब खुले में पढ़ी जाने वाली जुमे की सामूहिक नमाज पर भी सवाल उठा रहे हैं।
कभी झंडे में था मुसलमानों का हरा रंग
ये वही राज ठाकरे हैं जिनकी पार्टी के झंडे में कभी मुसलमान का एक रंग हरा भी था। पार्टी का मोटो मराठियों की आर्थिक आत्मनिर्भता था। वो यूपी-बिहार के लोगों को मुंबई से भगाने की बात करते थे। अबकी उनका स्टैंड अल्ट्रा हिन्दुत्व वाला है। इसमें मराठा क्षेत्रवाद कही पूछे छूटा लगता है।
राज ठाकरे का लाउड अंदाज
राज ठाकरे का अल्टीमेटम नं 1- हमारे भी त्योहार होते है। नवरात्रि होती है। 10 दिन के लिए हम समझ सकते हैं। फिर लाउडस्पीकर कम ही लगाना चाहिए। त्योहारों के दौरान हम समझ सकते हैं। लेकिन आप 365 दिन लाउडस्पीकर लगाते हैं। 3 तारीख को ईद है। मेरी राज्य सरकार और गृह विभाग से विनती है। हमें दंगा या कुछ और नहीं करना है। हमारी इच्छा भी नहीं है। महाराष्ट्र के हालात हमें नहीं बिगाड़ना है। आज 12 तारीख है। 12 से 3 मई के बीच में महाराष्ट्र के सभी मौलवियों को बुलाओ। उन्हें बोलो सभी मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर उतरने चाहिए।
राज ठाकरे का अल्टीमेटम नं 2- जो मेरा भाषण सुन रहे हैं, उन सभी को साक्षी मानकर मैं कहना चाहता हूं कि जिन मुसलमानों को प्रार्थना करना है। अपने घर में करें। हर कोई अपना धर्म अपने घर पर रखे। उसे सड़क पर न लाए। जब त्योहारो का मौका होगा तो हम 10-15 दिन समझ सकते हैं। लेकिन 365 दिन 24 घंटे ये नाटक, लफड़ा इसके आगे महाराष्ट्र में नहीं चलेगा।
राज ठाकरे का अल्टीमेटम नं 3- नरेंद्र मोदी सरकार से यही कहना है कि ये दो मांगे पूरी करो। देश पर बहुत उपकार होगा। पहला कि इस देश में समान नागरिक संहिता लागू करो। दूसरा इस देश में जनसंख्या पर नियंत्रण लाया जा सके ऐसा कानून बनाओ। हमारे पास एक और आपके पास पांच पांच। हमे इसकी तकलीफ नहीं है। लेकिन जिस तरह से जनसंख्या बढ़ रही है। किसी दिन विस्फोट हो जाएगा। ये कुछ चीजें देश में होना जरूरी हैं।
राज ठाकरे ने क्यों पकड़ी अलग राह
शिवसैनिक और आम लोग राज ठाकरे में बाल ठाकरे का अक्स, उनकी भाषण शैली और तेवर देखते थे और उन्हें ही बाल ठाकरे का स्वाभाविक दावेदार मानते थे, जबकि उद्धव ठाकरे राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते थे। राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की तरह अपनी बेबाक बयानबाजी को लेकर हमेशा चर्चाओं में रहे। स्वभाव से दबंग, फायर ब्रांड नेता राज ठाकरे की शिवसैनिकों के बीच लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। बाल ठाकरे को बेटे और भतीजे में से किसी एक को चुनना था। बालासाहब ठाकरे के दबाव के चलते उद्धव ठाकरे 2002 में बीएमसी चुनावों के जरिए राजनीति से जुड़े और इसमें बेहतरीन प्रदर्शन के बाद पार्टी में बाला साहब ठाकरे के बाद दूसरे नंबर पर प्रभावी होते चले गए। पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करते हुए जब कमान उद्धव ठाकरे को सौंपने के संकेत मिले तो पार्टी से संजय निरूपम जैसे वरिष्ठ नेता ने किनारा कर लिया और कांग्रेस में चले गए। 2005 में नारायण राणे ने भी शिवसेना छोड़ दिया और एनसीपी में शामिल हो गए। बाला साहब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे के बढ़ते कद के चलते उद्धव का संघर्ष भी खासा चर्चित रहा। यह संघर्ष 2004 में तब चरम पर पहुंच गया, जब उद्धव को शिवसेना की कमान सौंप दी गई। जिसके बाद शिवसेना को सबसे बड़ा झटका लगा जब उनके भतीजे राज ठाकरे ने भी पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। राज ठाकरे उसी चाल पर चलना चाहते थे जिस धार पर चलकर बाल ठाकरे ने अपनी उम्र गुजार दी। 27 नवम्बर 2005 को राज ठाकरे ने अपने घर के बाहर अपने समर्थकों के सामने घोषणा की। मैं आज से शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं। पार्टी क्लर्क चला रहे हैं, मैं नहीं रह सकता। हालांकि राज ठाकरे का पार्टी छोड़कर जाने का दुख बाल ठाकरे को हमेशा से रहा। लेकिन 16 साल की राजनीति में राज ठाकरे के हाथ अब तक कुछ खास नहीं लग सका है। शुरुआती दौर के अलावा राज ठाकरे के प्रति समर्थन भी लगातार घटता गया है। साल 2020 में दिवंगत शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे की जयंती पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के झंडे में बदलाव कर बड़ा सियासी संकेत देने की कोशिश की। इस झंडे का रंग केसरिया और इसके केंद्र में राजमुद्रा अंकित है। राज ठाकरे के इस कदम को उनकी पुरानी कट्टर हिंदुत्वादी विचारधारा एवं छवि की तरफ लौटने से जोड़कर देखा गया। राज ठाकरे ने नए झंडे का रंग केसरिया और इस पर अंकित राजमुद्रा शिवाजी से जुड़ी है। लेकिन उसके बाद भी राज ठाकरे ज्यादा सक्रिय नहीं नजर आए। लेकिन अब एक बार फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना के कांग्रेस और राकांपा के साथ जाने के बाद राज्य की राजनीति में राज ठाकरे को अपने लिए बड़ी भूमिका दिखने लगी है। राज ठाकरे बीजेपी के बताए रास्ते जा रहे हैं या बीजेपी के करीब जा रहे हैं। अभी ये सिर्फ एक अनुमान है।
राज ठाकरे का पल-पल बदलता स्टैंड
मनसे के गठन के बाद से ही राज ठाकरे का कभी बीजेपी से नजदीकी और दूरी का पल पल बदलता रिश्ता रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने खुले तौर पर बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करने का ऐलान कर दिया और कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी एमएनएस नरेंद्र मोदी को समर्थन देगी। इस दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा भी था कि राज शिवसेना-बीजेपी-आरपीआई गठबंधन में शामिल हुए बिना मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। लेकिन तब जवाब देते हुए राज ठाकरे ने कहा था कि मैंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को अपना समर्थन दिया है, राजनाथ को नहीं…मोदी इस मुद्दे पर चुप हैं तो फिर आप इसके बारे में क्यों बोल रहे हैं? वक्त बदलता है और मोदी सरकार सत्ता में आती है। पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करती है। फिर आता है 2019 का लोकसभा चुनाव। लेकिन इस दौरान एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को बिन मांगे समर्थन देने वाले राज ठाकरे 2019 आते-आते विरोध में खड़े नजर आते हैं। . 2019 के आम चुनाव से पहले राज ठाकरे महाराष्ट्र में घूम घूम कर मोदी विरोधी मुहिम चलाते हैं। राज ठाकरे के मंच से स्क्रीन पर मोदी के पुराने भाषण दिखाये जाते और लोगों को ये समझाने की कोशिश होती कि मोदी कितना झूठ बोलते हैं। तब मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस ने तो सीधे सीधे बोल दिया था कि राज ठाकरे बारामती की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं। बारामती एनसीपी नेता शरद पवार का इलाका है। लेकिन महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की बदलती सियासत और महाविकास अघाड़ी के गठन के बाद अब राज ठाकरे की एनसीपी से भी दूरी बढ़ गई। दरअसल, साल 2006 में शिवसेना से अलग होकर पार्टी बनाने और अपना मुकाम हासिल करने की राज ठाकरे की कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी है। वो अभी तक लोगों को ये नहीं समझा पाए हैं कि आखिर उनकी पार्टी शिवसेना से कैसे अलग है। शिवसेना की राजनीति के समथर्क उनसे वैसे ही दूरी बना लेते हैं। अगर वो किसी तरह अपने ऊपर कोई उदार छवि ओढ़ कर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पक्ष में खड़े होते हैं तो भी फेल हो जाते हैं – क्योंकि लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। कुछ कुछ वैसे ही जैसे बीजेपी से अलग होकर बाबूलाल मरांडी झारखंड में एक बार भी राजनीतिक तौर पर खड़ा नहीं हो पाये।