यूपी की जनता ऐसे लोगों को चुनती है विधायक, दशकों पुराना है ट्रेंड, जानें सब कुछ

उत्तर प्रदेश के वोटरों का भी जवाब नहीं, क्योंकि इस प्रदेश के वोटरों का अपना एक अलग ही मिजाज है। नेता कितनी भी दम लगा लें, लेकिन यहां का वोटर पहली बार मैदान में लड़ने वालों पर ज्यादा दांव लगाता है और उसको ही विधानसभा भी पहुंचाता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के आंकड़े तो यही तस्दीक करते हैं कि प्रदेश के लोगों ने नए चेहरों को मनभर वोट दिया और विधानसभा पहुंचाया।

 

उत्तर प्रदेश विधानसभा के नतीजों पर अगर नजर डालें, तो यहां पर पाएंगे सरकार भले ही किसी दल की रही हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के मतदाता हमेशा उसी उम्मीदवार को पसंद करते हैं जिसने पहली बार मैदान में ताल ठोकी हो। यानी नए चेहरों को विधानसभा पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश की जनता जानी जाती है।

 

 

2017 के विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि पिछले चुनावों में तो प्रदेश की जनता ने पहली बार चुनाव में किस्मत आजमा रहे लोगों पर जमकर भरोसा जताया था। प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों में जीते 259 विधायक तो ऐसे थे जो पहली बार चुनाव लड़े थे और पहली बार ही विधानसभा पहुंचे थे। करीब 65 फीसदी विधायक 17वीं विधानसभा में पहली बार अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे।

 

पहली दफा विधानसभा पहुंचने वालों का यह आंकड़ा बीते कई विधानसभा के चुनावों में सबसे ज्यादा रहा है। इसमें भी 2017 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले सदस्यों की संख्या 217 है।

 

2017 विधानसभा के चुनाव में जीतकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पहली बार के विधायकों की संख्या ही पहली बार सबसे ज्यादा नहीं थी। 2007 में जब मायावती की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, तब भी तकरीबन 51 फीसदी विधायक यानी 206 विधायक पहली बार विधानसभा में चुनकर अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने आए थे।

 

दो दशक का रिकॉर्ड तो यही कहता है कि जनता पहली बार चुनाव में किस्मत आजमा रहे लोगों पर खूब भरोसा करती है। 2012 में जब समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार में आई तो 167 विधायक ऐसे थे, जो पहली बार चुनावी मैदान से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उत्तर प्रदेश में हुए 2002 में विधानसभा के चुनावों में भी 175 विधायक ऐसे थे, जो पहली बार अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने लखनऊ पहुंचे थे। 1996 में 181 विधायक पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

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हालांकि, ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ पहली दफा चुनाव लड़ने वालों को ही वहां की जनता सिर पर बिठाती है और विधानसभा भेजती है। दूसरी बार चुनाव लड़ने वालों पर भी भरोसा जताने का प्रतिशत ठीक-ठाक होता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में हुए सत्र में विधानसभा के चुनावों में 98 सदस्य ऐसे रहे जो दूसरी बार चुनाव जीतकर सदन पहुंचे।

 

इसी तरह 2012 में हुए विधानसभा के चुनावों में दूसरी बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वालों की संख्या 102 थी। जबकि 2007 में हुए विधानसभा के चुनावों में 93 विधायक ऐसे थे जो दूसरी बार चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे थे। 2002 में हुए विधानसभा के चुनावों में 101 विधायक दूसरी बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। जबकि 1996 में हुए चुनावों में दूसरी बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले विधायकों की संख्या 115 थी।

 

उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले राजनैतिक विश्लेषक जटाशंकर सिंह कहते हैं कि अगर आप आंकड़े उठाकर देखें तो पाएंगे कि अमूमन हर चुनाव में औसतन 45 फीसदी विधायक उत्तर प्रदेश में पहली बार जनता का प्रतिनिधित्व करने सदन पहुंचते हैं। वह कहते हैं कि बीती पांच विधानसभा के चुनाव के परिणाम तो यही बताते हैं।

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उनका कहना है कि जनता अपने नेताओं का आकलन बखूबी करती है। यही वजह है अगर आप प्रतिशत के तौर पर देखेंगे तो तकरीबन आधे विधायक पहली बार हर विधानसभा के चुनाव में जीत कर आते हैं। वह कहते हैं इसका मतलब बिल्कुल सीधा सा है कि या तो पार्टी अपने नेताओं का परफॉर्मेंस देख कर उनको बदल देती है या जनता पुराने विधायकों को रिजेक्ट कर देती है।