सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना रोधी वैक्सीन के ट्रायल से संबंधित डाटा में पारदर्शिता लाने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम कुछ मुद्दों पर सुनवाई कर रहे हैं। हम नोटिस जारी कर रहे हैं, लेकिन हम टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- याचिका से लोगों में पैदा होगा भ्रम
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश वैक्सीन की कमी से लड़ रहा है। टीकाकरण जारी रहे और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई गई, आपको वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस याचिका से उन लोगों में भ्रम पैदा होगा जिन्होंने वैक्सीन लगवा रखी है। तब याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते तो वैक्सीन को लेकर विश्वास की कमी लोगों के बीच रहेगी।
याचिका नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन के पूर्व सदस्य डॉक्टर जैकब पुलियेल ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कोरोना रोधी वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का डाटा सार्वजनिक किया जाए। याचिका में मांग की गई है कि कोरोना संक्रमण के बाद होने वाले गंभीर प्रभावों का भी डाटा सार्वजनिक किया जाए। याचिका में मांग की गई है कि जिन मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी या जिनकी मौत हो गई उनके आंकड़ों का खुलासा होना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि दूसरे देशों में वैक्सीन देने वाले लोगों के डाटा का अध्ययन करने के बाद खून जमने या स्ट्रोक आने जैसी समस्या में मदद मिली। याचिका में कहा गया है कि कई देशों ने वैक्सीन के बाद के असर के आकलन होने तक वैक्सीन देना बंद कर दिया। यहां तक कि डेनमार्क जैसे देश ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन पर प्रतिबंध लगा दिया। एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का नाम भारत में कोविशील्ड है।