राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को देश में कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की। भारत-विश्वगुरु विषय पर व्याख्यान देते हुए पुणे में भागवत ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग यह समझ रहे हैं कि इस तरह के विवाद उठाकर वे हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह अस्वीकार्य है।
मोहन भागवत ने की सद्भाव के साथ रहने की वकालत
समावेशी समाज की वकालत करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि देश सद्भाव के साथ रह सकता है। भागवत ने कहा कि हम लंबे समय से सद्भावना के साथ रह रहे हैं। अगर हम दुनिया को यह सद्भावना प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है। राम मंदिर के निर्माण के बाद, कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने किसी विशेष स्थल का जिक्र किए बगैर कहा कि हर दिन एक नया मामला (विवाद) उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम साथ-साथ रह सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है राष्ट्रव्यापी आदेश
आरएसएस प्रमुख की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब हाल के दिनों में मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों के सर्वेक्षण की कई मांगें अदालतों तक पहुंच गई हैं।
12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्रव्यापी निर्देश जारी कर सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने या मस्जिदों का सर्वेक्षण करने के आदेश पारित करने से रोक दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनके नीचे मंदिर की संरचना है या नहीं।
मोहन भागवत ने कहा- देश संविधान से चलता है
गुरुवार को अपने व्याख्यान के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए हैं और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आ जाए। उन्होंने कहा कि लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है। इस व्यवस्था में लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं। आधिपत्य के दिन चले गए हैं।
भागवत ने मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके शासन की विशेषता ऐसी ही दृढ़ता थी। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि मुगल शासक के वंशज बहादुर शाह जफर ने भी 1857 में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
अंग्रेजों की वजह से आई अलगाववाद की भावना
मोहन भागवत ने कहा कि यह तय हुआ था कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को दिया जाना चाहिए, लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई और उन्होंने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी। तब से, अलगाववाद की यह भावना अस्तित्व में आई। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान अस्तित्व में आया। भागवत ने यह भी सवाल उठाया कि यदि सभी लोग स्वयं को भारतीय बताते हैं तो प्रभुत्व की भाषा का प्रयोग क्यों किया जा रहा है।
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मोहन भागवत ने कहा कि कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं। इस देश की परंपरा है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं। आवश्यकता केवल सद्भावना से रहने और नियमों और कानूनों का पालन करने की है।