उत्तर-पूर्व के राज्यों में दशकों से चला आ रहा ‘उग्रवाद’ अब अंतिम सांस ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अचूक रणनीति काम कर गई है। वहां के अलग-अलग उग्रवादी समूहों में आत्मसमर्पण करने की होड़ मची है। हथियार डालकर उग्रवादी समूह, अब राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। जून 2006 से मई 2014 के दौरान उत्तर-पूर्व में उग्रवाद की 8700 घटनाएं हुई थीं, जबकि जून 2014 से अगस्त 2022 तक वहां 3195 मामले देखने को मिले हैं। घटनाओं में लगभग 63 फीसदी की कमी दर्ज हुई है। 2006 से 2014 तक उग्रवादी हमलों में 304 सुरक्षा कर्मी मारे गए, वहीं 2014 से 2022 तक 128 सुरक्षा कर्मियों की जान गई है। इस अवधि में नागरिकों के मारे जाने की संख्या देखें तो वह 419 रही है, जबकि 2006 से 2014 तक 1890 नागरिक मारे गए थे। गत आठ वर्ष में यह आंकड़ा 78 फीसदी तक घट गया है।
हथियार डालने के लिए किया मजबूर
केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, 2014 के बाद उत्तर पूर्व के उग्रवादियों पर तेजी से शिकंजा कसना शुरू हुआ था। मौजूदा समय में जो नतीजे दिखाई पड़ रहे हैं, उनके पीछे उग्रवादी समूहों को हथियार डालने के लिए मजबूर करना, एक बड़ी वजह रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, गत तीन वर्षों में भारत सरकार, असम सरकार और इस क्षेत्र की अन्य सरकारों ने आपस में विभिन्न उग्रवादी गुटों के साथ अनेक समझौते किए हैं। 2019 में एनएलएफटी, 2020 में बीआरयू-आरईएएनजी और बोडो समझौता, 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौता व 2022 में असम-मेघालय अंतरराज्यीय सीमा समझौता किया गया है। इसके तहत लगभग 65 फीसदी सीमा विवाद का समाधान हो सका है।
सभी समझौतों के 93 फीसदी काम पूरे: शाह
गुरुवार को भारत सरकार, असम सरकार और आठ आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों के बीच एतिहासिक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते से असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों की दशकों पुरानी समस्या समाप्त होगी। समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले आठ समूहों में बीसीएफ, एसीएमए, एएएनएलए, एपीए, एसटीएफ, एएएनएलए (एफजी), बीसीएफ (बीटी) और एसीएमए (एफजी) शामिल हैं। शाह ने कहा, भारत और असम सरकार, आदिवासी समूहों के साथ हुए समझौते की शर्तों के पूरी तरह पालन को सुनिश्चित करेंगी। मोदी सरकार का ये रिकॉर्ड है कि उसने अब तक किए गए सभी समझौतों के 93 फीसदी काम पूरे किए हैं। इसके परिणामस्वरूप असम सहित पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति बहाल हो सकी है।
2014 में उग्रवाद की 824 घटनाएं तो 2022 में 158
उत्तर-पूर्व में 2014 के दौरान उग्रवाद की 824 घटनाएं देखने को मिली थीं, अब एक सितंबर 2022 को इनकी संख्या 158 रही है। आठ साल पहले 181 उग्रवादी मारे गए थे, जबकि इस वर्ष मारे गए उग्रवादियों की संख्या 6 है। 2014 में 1934 उग्रवादी गिरफ्तार हुए थे तो वहीं इस साल वह आंकड़ा 417 रहा है। आठ साल पहले उग्रवादी घटनाओं में 20 सुरक्षा कर्मियों की जान गई थी, इस वर्ष वह आंकड़ा 2 है। 2014 में 212 नागरिक मारे गए थे, जबकि अब वह संख्या 6 है। 2014 में 291 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया था। साल 2020 में रिकॉर्ड 2696 उग्रवादियों ने सरेंडर कर दिया। अगले साल भी 1473 उग्रवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए। इस साल अभी तक 793 उग्रवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। 2014 में 369 व्यक्तियों का अपहरण किया गया, जबकि इस वर्ष वह आंकड़ा 77 है।
2025 तक उत्तर-पूर्व होगा उग्रवाद मुक्त
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी के शांतिपूर्ण और समृद्ध उत्तर पूर्व के विजन के अनुसार, यह समझौता 2025 तक उत्तर-पूर्व को उग्रवाद मुक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। पीएम मोदी ने उत्तर पूर्व को शांत और विकसित बनाने की दिशा में कई अहम प्रयास किए हैं। गुरुवार को हुए समझौते में असम के आदिवासी समूहों के 1182 कैडर हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। वहां पर संवादहीनता और हितों के टकराव के कारण अलग-अलग गुटों ने हथियार उठा लिए थे। इस वजह से वहां इन गुटों और राज्य सरकारों तथा केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ों में हजारों लोगों की जानें गईं। केंद्र सरकार, 2024 से पहले पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच सीमा विवादों और सशस्त्र गुटों से संबंधित सभी विवादों को हल कर लेगी।
समझौते में आदिवासी समूहों की सामाजिक, सांस्कृतिक, जातीय और भाषाई पहचान को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसे और अधिक मजबूत बनाने का भी प्रावधान किया गया है। समझौते में चाय बागानों का त्वरित और केंद्रित विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक आदिवासी कल्याण और विकास परिषद की स्थापना की जाएगी। आदिवासी आबादी वाले गांवों/क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पांच साल की अवधि में 1000 करोड़ रुपये (भारत सरकार और असम सरकार, प्रत्येक द्वारा 500 करोड़ रुपये) का विशेष विकास पैकेज प्रदान किया जाएगा।
2021 में उग्रवाद की घटनाओं में तेजी से आई कमी
तीन वर्षों के दौरान हुए इन समझौतों पर हस्ताक्षर …
अगस्त, 2019 में एनएलएफटी (एसडी) के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके फलस्वरूप 44 हथियारों के साथ 88 कैडर ने आत्मसमर्पण किया।
जनवरी 2020 को 23 साल पुराने ब्रू-रियांग शरणार्थी संकट को हल करने के लिए एतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत त्रिपुरा में 37,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को बसाया जा रहा है।
असम में पांच दशक पुराने बोडो मुद्दे को हल करने के लिए बोडो समझौते पर 27 जनवरी, 2020 को हस्ताक्षर किए गए। इसके चलते गुवाहाटी में आयोजित आत्मसमर्पण समारोह में कुल 1615 कैडर ने भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद के साथ आत्मसमर्पण किया था।
असम के कार्बी क्षेत्रों में लंबे समय से चल रहे विवाद को हल करने के लिए सितम्बर, 2021 को कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यहां पर भी एक हजार से अधिक सशस्त्र कैडर हिंसा का रास्ता त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
असम और मेघालय राज्यों के बीच अंतरराज्यीय सीमा विवाद के कुल बारह क्षेत्रों में से छह क्षेत्रों के विवाद के निपटारे के लिए 29 मार्च 2022 को एक एतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
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सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम का दायरा घटा
सुरक्षा स्थिति में सुधार के परिणामस्वरूप उत्तर-पूर्व के राज्यों की वर्षों से लंबित भावनात्मक मांग को पूरा करते हुए यहां के एक बड़े भूभाग से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) के तहत अशांत क्षेत्रों को कम किया गया है।
असम: 60 फीसदी असम अब एएफएसपीए से मुक्त हो गया है।
मणिपुर: 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों को अशांत क्षेत्र की परिधि से बाहर लाया गया।
अरुणाचल प्रदेश: अब सिर्फ 3 जिलों और एक जिले के दो पुलिस स्टेशन में एएफएसपीए बचा है।
नागालैंड: 7 जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों से अशांत क्षेत्र अधिसूचना को हटाया गया।
त्रिपुरा और मेघालय में पूरी तरह से एएफएसपीए हटा लिया गया है।