शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने MDH का प्रचार नहीं देखा होगा, MDH मसालों का नाम आते ही प्रचार की ये लाइने ‘ असली मसाले सच सच एमडीएच’ दिमाग में आ ही जाती है। इस सुप्रसिद्ध मसालें के प्रचार की पहचान है, उसमे दिखने वाले एमडीएच ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी….
पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित थे महाशय धर्मपाल गुलाटी
पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित मसाला किंग के नाम से मशहूर महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का 98 वर्ष की आयु में आज सुबह करीब 5.50 बजे दिल्ली के माता चन्नन देवी हॉस्पिटल निधन हो गया। खबरों के मुताबिक, गुलाटी का पिछले तीन हफ्तों से दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। आपको बता दें कि मसाला किंग महाशय धर्मपाल गुलाटी ने कभी एक छोटी सी दुकान से मसालों का कारोबार शुरू कर एक बड़ा ब्रांड खड़ा कर दिया। आइए जानते हैं उनके जीवन सफर के बारे में..
कक्षा पांच तक की पढ़ाई –
महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। 1933 में 5 वी कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पढ़ना पढाई छोड़ दिया और 1937 में पिता का हाथ बंटाते हुए एक छोटा सा व्यापार प्रारम्भ कर दिया। इस बीच उन्होंने साबुन का कारोबार किया और नौकरी भी की। इस दौरान कपड़े, चावल आदि का भी कारोबार किया लेकिन कोई कारोबार नहीं टिका। फिर उन्होने अपने पारिवारिक कारोबार मसालों का कारोबार शुरू किया। मसाले के छोटे से काम से आज उनका काम देश-विदेश में फैल चुका है। महाशय धर्मपाल ने अपने माता पिता के नाम पर कई अस्पताल और अन्य संस्थाए खोली हैं। आज उनकी कंपनी के मसालों का अमेरिका, कनाडा ,ब्रिटेन ,यूरोप , जापान समेत अनेक देशों में निर्यात होता है।
उन्हें लंबे समय से जानने वाले बताते हैं कि कठिन संघर्ष और अनोखी सूझ-बूझ से धीर-धीरे इस कारोबार को उन्होंने वह ऊंचाई प्रदान की कि मसाला उद्योग में दूर- दूर तक इनका कोई प्रतियोगी न रहा। एमडीएच ब्रांड मसाले अपनी शुद्धता और गुणवत्ता को लेकर पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों में भी प्रसिद्ध हो गए। वे स्वयं अपनी कंपनी के विज्ञापनों में आना पसंद करते हैं। आपने उन्हें अखबारों और टीवी पर अपने विज्ञापनों में बड़े मस्त भाव से प्रचार करते जरूर देखा होगा। वे कहते हैं कि एमडीएच के लाभ का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में खर्च होता है। उनकी मां चन्नन देवी के नाम से राजधानी के जनकपुरी में चलने वाले अस्पताल में गरीब रोगियों का मुफ्त इलाज होता है।
पाकिस्तान से शुरू हुआ कारोबार-
महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) देश में मसालों का बड़ा ब्रांड है। वह मसालों के मैन्युफैक्चर, डिस्ट्रिब्यूटर और एक्सपोर्टर हैं। एमडीएच की स्थापना साल 1919 में सियालकोट (पाकिस्तान) में महाशय चुन्नी लाल ने की थी। तब वह मसालों कि एक छोटी दुकान चलाते थे। थोड़े ही समय में वह काफी फेमस हो गए थे और उन्हें वहां ‘डेगी मिर्च वाले के नाम से लोग जानने लगे।
विभाजन के बाद आए भारत-
1500 रुपये थे जेब में, चलाते थे टांगा- जब देश का बंटवारा किया गया तो वह भारत लौट आये और 27 सितम्बर 1947 को वह दिल्ली पहुँचे। उन दिनों उनके जेब में महज 1500 रुपये ही थे। इन पैसों से उन्होंने 650 रुपये का टांगा खरीद लिया। जिसे वह न्यू दिल्ली स्टेशन से लेकर कुतब रोड और उसके आस पास चलाते थे। मन में पारिवारिक व्यवसाय को प्ररम्भ करने का जूनून ख़त्म नहीं हुआ था। अपने पिता के कारोबार को आगे बढ़ाने के बारे में सोचा। व्यवसाय को प्रारम्भ करने के लिए छोटे लकड़ी के खोके ख़रीद कर उन्होंने इस व्यवसाय को प्रारम्भ किया।
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करोल बाग में ली दुकान-
उन्होंने बाद में करोल बाग के अजमल खां रोड पर ‘महाशियां दी हट्टी ऑफ सियालकोट (डेगी मिर्च वाले)’ के नाम से दुकान खोल ली। इसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। आज महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) देश में मसालों का बड़ा ब्रांड है। वह मसालों के मैन्युफैक्चर, डिस्ट्रिब्यूटर और एक्सपोर्टर हैं।
वेतन का 90 फीसदी करते थे दान-
गुलाटी की कंपनी ब्रिटेन, यूरोप, यूएई, कनाडा आदि सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारतीय मसालों का निर्यात करती है। 2019 में भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। एमडीएच मसाला के अनुसार, धर्मपाल गुलाटी अपने वेतन की लगभग 90 प्रतिशत राशि दान करते थे।