कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने साफ कर दिया है कि ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले पर लाए गए केंद्र के अध्यादेश पर कांग्रेस आप को सपोर्ट नहीं करेगी। कांग्रेस इस मामले पर क्यों सपोर्ट नहीं करेगी, इसके भी उन्होंने कई कारण गिना दिए हैं। माकन ने कहा कि अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो वो नेहरू-अंबेडकर के निर्णयों के खिलाफ जाने जैसा होगा।
क्यों नहीं मिलेगा सपोर्ट माकन ने बता दिया
अजय माकन ने इस मामले को लेकर एक विस्तार से पोस्ट लिखा है। जो उन्होंने ट्विटर पर शेयर भी किया है। उन्होंने इस लेख का शीर्षक दिया है-“अध्यादेश का विरोध न करने के कारणों की समीक्षा – प्रशासनिक, राजनीतिक और कानूनी पहलू।” उन्होंने लिखा कि चर्चा दो महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ शुरू होनी चाहिए।
नेहरू-अंबेडकर का दिया हवाला
माकन ने लिखा कि सर्वप्रथम, केजरीवाल का समर्थन करके, हम अपने अनेक सम्मानित नेताओं: 21 अक्टूबर 1947 को बाबा साहब अम्बेडकर, 1951 में पंडित नेहरू और सरदार पटेल, 1956 में पंडित नेहरू द्वारा लिया गया एक और निर्णय, गृह मंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा 1964 में और 1965 में प्रधान मंत्री के रूप में, और 1991 में श्री नरसिम्हा राव द्वारा लिए गए विवेकपूर्ण निर्णयों के विरोध में खड़े नजर आएंगे।
दूसरा कारण
अजय माकन ने आगे लिखा कि दूसरा कारण है कि यदि यह अध्यादेश पारित नहीं होता है, तो केजरीवाल को एक अद्वितीय विशेषाधिकार प्राप्त होगा, जिससे शीला दीक्षित, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज जैसे पूर्व के मुख्यमंत्रियों को वंचित रहना पड़ा था।
‘भाजपा के साथ जब गए केजरीवाल‘
अजय माकन ने आगे उन घटनाओं को जिक्र किया जब केजरीवाल भाजपा के साथ खड़े दिखे थे। माकन ने लिखा-“केजरीवाल ने कांग्रेस पार्टी का समर्थन मांगा है, हालांकि, उनकी कुछ पिछली राजनीतिक गतिविधियां सवालों के घेरे में हैं। उनकी पार्टी ने भाजपा के साथ एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से हमारे प्रिय राजीव जी से भारत रत्न वापस लेने का अनुरोध किया। इसके अलावा, केजरीवाल ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह भाजपा का समर्थन किया। केजरीवाल ने विभिन्न आरोपों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने के दौरान भी भाजपा का समर्थन किया। यह उल्लेखनीय है कि केजरीवाल विवादास्पद किसान विरोधी कानूनों को लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनकी पार्टी ने राज्यसभा के उपसभापति के लिए विपक्ष के उम्मीदवार का भी विरोध किया और इसके बजाय भाजपा द्वारा प्रायोजित उम्मीदवार का समर्थन किया। गुजरात, गोवा, हिमाचल, असम, उत्तराखंड में भाजपा के लिए केजरीवाल का समर्थन और हाल के कर्नाटक चुनावों में, जहां उन्होंने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए, उससे यह सवाल भी उठता है कि केवल उन्हीं राज्यों में वह ऐसा क्यों करते हैं, जहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी या सत्ताधारी पार्टी है?”