राजस्थान कांग्रेस में मचे सियासी घमासान के बीच सीएम पद पर सचिन पायलट की संभावित ताजपोषी को लेकर पार्टी विधायकों और मंत्रियों का असंतोष खुलकर सामने आ गया है। दरअसल, पार्टी आलाकमान ने तय कर लिया था कि मौजूदा सीएम अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की स्थिति में उनकी जगह सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बना दिया जाए। इस पर राज्य में आपसी खींचतान शुरू हो गई। इस बीच सीपी जोशी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की जा रही है।
बताया जा रहा है कि गहलोत समर्थक विधायक सचिन पायलट के नेतृत्व में काम करने से सख्त इनकार कर दिए हैं। जिसके बाद सीएम गहलोत ने मुख्यमंत्री पद के लिए राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के नाम की सिफारिश की है। हालांकि जोशी और गहलोत के बीच अतीत में खटास भरे रिश्ते थे, लेकिन जून 2020 में जोशी द्वारा गहलोत की सरकार बचाने में मदद करने के बाद दोनों नेताओं के बीच नजदीकियां बढ़ गईं।
चार बार केंद्र में रह चुके हैं मंत्री: मुख्यमंत्री पद के दावेदार सीपी जोशी अशोक गहलोत के बाद राजस्थान कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेता है। उन्हें संगठन का लंबा अनुभव है। ब्राह्मण समुदाय से आने वाले जोशी की प्रदेश के इस समुदाय पर अच्छी पकड़ हैं। सीपी जोशी 2008 के विधानसभा चुनाव में महज एक वोट से चुनाव हार गए थे और मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे।
चार बार केंद्र में मंत्री रह चुके सीपी जोशी राहुल गांधी के भी करीबी बताए जाते हैं। उन्होंने राजस्थान सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया और UPA-2 सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 2018 में पायलट की बगावत के दौरान जोशी ने अशोक गहलोत की सरकार बचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
29 साल की उम्र में पहली बार बने विधायक: राजस्थान के राजसमंद जिले के कुंवरिया में जन्मे सीपी जोशी ने मनोविज्ञान में डॉक्टरेट के साथ ही लॉ की डिग्री भी हासिल की है। राजनीति में आन एसे पहले लेक्चरर की जॉब करते थे। इस दौरान राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने उन्हें अपने चुनाव अभियान के लिए काम पर रखा। उस चुनाव में अपनी जीत से खुश होकर सुखाड़िया ने 1980 में जोशी को टिकट दिया था। सीपी जोशी जब पहली बार विधायक बने उस समय उनकी उम्र मात्र 29 वर्ष थी। साल 2008 में, जोशी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे।
महज एक वोट से हार गए थे चुनाव: ऐसा माना जाता है कि 2008 में गहलोत ने गुप्त रूप से सीपी जोशी के खिलाफ प्रचार किया था, जिसके बाद वे नाथद्वारा सीट से एक वोट से चुनाव हार गए और मुख्यमंत्री नहीं बन सके। इस चुनाव में उनकी पत्नी ने वोट नहीं दिया था। बाद में मीडिया से बात करते हुए सीपी जोशी ने इस बारे में कहा था, “हां यह सच है कि मेरी पत्नी और बेटी वोटिंग वाले दिन मंदिर गई हुई थीं, इस कारण वह मतदान नहीं कर पाईं थीं।”