सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार उद्धव ठाकरे की अर्जी पर फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा ना दिया होता तो राहत मिल सकती थी। इसके साथ ही विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे को बड़ी बेंच में भेज दिया। लेकिन कुछ खास टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि पहली बात तो ये कि राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट के लिए नहीं कहना चाहिए था। इसके साथ अदालत ने कहा कि विधायकों को अयोग्य ठहराने या वो संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत वो दलबदल के दायरे में आते हैं या नहीं इसका फैसला स्पीकर को करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायक अयोग्य हैं या नहीं इसका फैसला स्पीकर नार्वेकर को करना है। इस विषय पर एनसीपी नेता अजित पवार ने खास टिप्पणी की है।
अजित पवार ने क्या कहा
NCP नेता अजित पवार ने कहा कि हमारे स्पीकर ने तब हमारे सीएम उद्धव ठाकरे से पूछे बिना इस्तीफा दे दिया था, ऐसा नहीं होना चाहिए था। यहां तक कि अगर वह इस्तीफा दे देते, तो हम तुरंत नया अध्यक्ष चुन सकते थे। अगर हमारा स्पीकर होता तो वो 16 विधायक तब अयोग्य हो जाते। मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे से नैतिक आधार पर इस्तीफा मांगने की जरूरत नहीं है। हम जानते हैं कि वह सपने में भी इस्तीफा नहीं देंगे। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा लोगों में बहुत बड़ा अंतर है।अगला विधानसभा सत्र जुलाई के महीने में आयोजित किया जाएगा। हम अपने अधिकारों का उपयोग यह देखने के लिए करेंगे कि हम इस मुद्दे के बारे में क्या कर सकते हैं।
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क्या है मामला
2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत की थी। उनके साथ कुल 15 विधायक पहले सूरत पहुंचे और बाद में गुवाहाटी। सरकार बचाने की कवायद में उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों को अयोग्य मानते हुए दलबदल की शिकायत की। लेकिन धीरे धीरे बागी विधायकों की संख्या शिंदे के पक्ष में बढ़ती हुई 40 तक जा पहुंची। उद्धव गुट का तर्क था कि जो विधायक अयोग्य हैं वो सरकार का हिस्सा कैसे बन सकते हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिस पर गुरुवार को संवैधानिक पीठ ने फैसला देते हुए बड़ी बेंच को मामला सौंपा। इसके अलावा यह कहा कि विधायकों की योग्यता या अयोग्यता का फैसला विधानसभा के स्पीकर को करना चाहिए।