आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी या दशहरें के रूप में पर्व मनाया जाता है। श्री राम का लंका दहन तथा मां दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी अवतार दशमी को हुआ था, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है।यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन स्वयं सिद्ध अबूझ मुर्हूत होता है कोई भी नया काम शुरू करना शुभ होता है। इस दिन रावण मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले जलाने की परम्परा है। इस दिन संध्या के समय के पुतलों का दहन किया जाता है।
बता दें कि विजय दशमी के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। ये क्षत्रियों का बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन अस्त्र- शस्त्र पूजन का विधान है। मां दुर्गा भगवान राम की पूजा , अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाण, और शमी पूजन आदि कर्म इस पर्व पर किये जाते है। अपरान्ह बेला में ईशान दिशा में अपराजिता देवी के साथ जया और विजयादेवी का पूजन किया जाता है।
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दशहरे के दिन शमी वृक्ष के पूजन का भी विधान है। एक कथानुसार- महाभारत काल में अर्जुन ने अज्ञातवास के समय अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था और वृहन्लता के वेश में राजा विराट के यहाँ नौकरी कर ली थी। और उसके उपरान्त अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। भगवान रामचन्द्र जी द्वारा लंका पर चढ़ाई के समय शमी वृक्ष ने रामचन्द्रजी की विजय का उद्घोष किया था इसीलिए विजय काल मे शमी का पूजन किया जाता है।
विजय मुहूर्त–
ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल बताते है कि इस वर्ष दशमी तिथि का मान 25 अक्टूबर को दिन 11:14 से 26 अक्टूबर को दिन 11:33 तक है और विजय मुहूर्त 25 अक्टूबर को दिन 01:43 से 02:28 तक है। अपरान्ह मुर्हूत दिन में 12:58 से 03:13 तक अपराजिता देवी का पूजन, शमी वृक्ष पूजन और सीमा उल्लंघन कर्म करना शुभ होगा।