मन से बड़े बने


मुम्बई। संगीतकार सरोज सुमन और गीतकार अमित त्यागी की जुगलबंदी इस समय श्रोताओं के लिए फायदे का सौदा बन गयी है। लॉक डाउन के दौरान दोहे और भारत का अफसाना जैसे शानदार नग़मे देने के बाद अब यह जोड़ी मन से बड़े बने लेकर आ रही है। गौरतलब है कि अमित त्यागी सरकारी मंथन के संपादकीय सलाहकार भी हैं। सरोज सुमन के संगीत निर्देशन में यह गीत दिव्य स्वरूप लिए हैं। आध्यात्मिक चेतनाओं को झंकृत करके यह हृदय की संवेदनाओ को झकझोरता है। इस गीत के कुछ शब्द यूं हैं। दीन दुखी जो ग़म के मारे, हर लें हम उनके अंधियारे, आंसू पोंछे, दर्द को पीलें, कुछ तो कष्ट हरें, मन से बड़े बनें।।
सरोज सुमन का गीत पर कहना है कि अमित त्यागी ने इस गीत के माध्यम से जयशंकर प्रसाद की लेखनी की ऊंचाइयों को स्पर्श किया है। जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में जीवन और प्रेम के प्रति समरसता को प्रकाशित हुए कहा है कि संसार के द्वंदों का उद्गम शाश्वत सत्य है। फूल के साथ काँटे, भाव के साथ अभाव, सुख के साथ दुख और रात्रि के साथ दिन, यह चक्र चलता रहता है। मानव जब इनमें से किसी एक को चुन लेता है और दूसरे को छोड़ देता है। यही उसके विषाद का कारण होता है।

गीत पर अमित त्यागी का कहना है कि अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य में भय के साथ संशय बना हुआ है किंतु ऐसे में भी लोगों के मन मे एक दूसरों के लिए कलुषित विचार होना समझ से परे हैं। सिर्फ लोगों के बीच ही नही बल्कि देशों के बीच भी इस गंभीर वातावरण के दौरान टकराव होना कहीं न कहीं मानसिकता को दिखाता है। धन संपदा की दौड़ और भोगवाद में हम शायद इतना अंदर तक घुस गए हैं कि मन की गहराई कम होती चली गयी। अब मानवता को धन से नही मन से बड़े होने की आवश्यकता है।