अक्षय नवमी 23 नवम्बर को, आंवले की क्यों की जाती पूजा जानिये इस खबर में

कार्तिक शुल्क पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी, धात्री नवमी या आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष अक्षय नवमी 23 नवम्बर है नवमी  तिथि 22 नवम्बर को रात्रि 10:32 से प्रारम्भ  होकर 23 नवम्बर की रात्रि 12:32 तक है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करके आंवले के पेड़ की अक्षत्र,  पुष्प, चंदन आदि से कच्चा धागा बांध कर सात बार परिक्रमा की जाती है।

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अक्षय नवमी 23 नवम्बर को

आंवला भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। आंवला में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इसके सेवन से निरोग रहते है।  आयुर्वेद में आंवले को त्रिदोषहर कहा गया है। यानी वात, पित्त, कफ इन तीनों को नियंत्रित रखता है इस दिन आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -सौभाग्य की कामना की जाती है। इस दिन किया गया तप, जप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करता है तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है। मान्यता है कि इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से सभी रोगों का नाश होता है।

स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ के ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल

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इससे जुड़ी एक छोटी कथा में इसका महत्व भी उजागर होता है।  कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु व शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी व बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को और बेल शिव को प्रिय है। आंवला वृक्ष के पूजन का शुभ मुर्हूत प्रातः 06:32 से दिन 11:53 तक है।