मुंबई । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को वृहद आर्थिक स्थिति और वैश्विक परिस्थितियों पर गौर करते हुए प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 5.25 प्रतिशत कर दिया। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने अमेरिकी शुल्क के प्रभावों से निपटने के लिए बेहद संतुलित अर्थव्यवस्था को समर्थन देने वाले कदमों की भी घोषणा की।आरबीआई के रेपो दर में कटौती से आवास, वाहन और वाणिज्यिक कर्ज सस्ता होने की उम्मीद है।अर्थव्यवस्था के मजबूत प्रदर्शन को देखते हुए आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया। इसके अलावा महंगाई दर के अनुमान को 2.6 प्रतिशत से घटाकर दो प्रतिशत कर दिया गया है। इस तरह वर्ष 2025 में रेपो दर में अब तक कुल 1.25 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है। इससे पहले, केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी से जून तक रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती की थी।
वहीं अगस्त और अक्टूबर में मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया था। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने छह-सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीस) की तीन-दिवसीय बैठक में लिए गए इन निर्णयों की जानकारी दी। उन्होंने कहा, एमपीसी ने आम सहमति से रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 5.25 प्रतिशत करने का निर्णय किया है। रेपो दर में इस कटौती से आरबीआई ने डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 90 के भी पार चले जाने से जुड़ी आशंकाएं दरकिनार करने की कोशिश की है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में पांच प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है जो एशिया की सभी मुद्राओं के बीच सबसे खराब प्रदर्शन है। रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। इसके साथ ही आरबीआई ने मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ बनाए रखने का फैसला किया है। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक स्थिति के हिसाब से नीतिगत दर में समायोजन को लेकर लचीला बना रहेगा।
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया है। वहीं चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को घटाकर 2.0 प्रतिशत कर दिया गया जबकि पहले इसके 2.6 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था। मल्होत्रा ने कहा कि आर्थिक वृद्धि जहां मजबूत बनी हुई है वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति में अक्टूबर से ही तीव्र गिरावट देखी गई है। खुदरा मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के लिए निर्धारित दायरे की निचली सीमा से भी कम हो गई है। आरबीआई गवर्नर ने कहा, वृद्धि एवं मुद्रास्फीति के बीच संतुलन, खासकर मुख्य एवं कुल मुद्रास्फीति दोनों मोर्चे पर अच्छे परिदृश्य की वजह से वृद्धि की रफ्तार को समर्थन देने के लिए नीतिगत गुंजाइश बनी हुई है। उन्होंने कहा कि खराब और मुश्किल बाहरी परिवेश के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने जबर्दस्त जुझारू रवैया दिखाया है और उच्च वृद्धि दर्ज करने के लिए तैयार है। इसमें मुद्रास्फीति परिदृश्य से पैदा हुई गुंजाइश ने इसमें मदद की है।
गवर्नर ने कहा कि महंगाई के नरम रुख और मजबूत वृद्धि संकेतकों को देखते हुए आरबीआई उधारी लागत को कम करने और बाजार में पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराने पर जोर देता रहेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने के बाद भारतीय निर्यात दबाव में हैं। ऐसे माहौल में घरेलू मांग को मजबूत बनाए रखना एक प्रमुख प्राथमिकता बन गया है। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने इस महीने एक लाख करोड़ रुपये के सरकारी बॉन्ड की खरीद के लिए खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) करने और नकदी बढ़ाने के लिए पांच अरब डॉलर का डॉलर-खरीदाबिक्री अदलाबदली करने की घोषणा की।
ओएमओ का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंकों के पास कम ब्याज दरों का लाभ उपभोक्ताओं और उद्योग तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त नकदी हो। रिजर्व बैंक के इन कदमों पर डीबीएस बैंक में कार्यकारी निदेशक एवं वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि आरबीआई ने लगभग सभी मोर्चों पर बाजार की अपेक्षाओं के अनुरूप निर्णय लिए हैं। उन्होंने कहा कि निर्धारित सीमा से नीचे चल रही मुद्रास्फीति इस नीतिगत निर्णय का प्रमुख आधार रही। आरबीएल बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री अनीता रंगन ने कहा कि रेपो दर में कटौती से रुपये पर दबाव बढ़ने की आशंका है, लेकिन पांच अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा अदलाबदली इस बात का संकेत है कि केंद्रीय बैंक मुद्रा स्थिरता को लेकर सक्रिय है।
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