एएमयू मामला: सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया 57 साल पुराना अपना ही फैसला, गठित होगी तीन जजों कीनई बेंच

सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में फैसला सुनाया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक होने का दावा नहीं कर सकती, लेकिन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले को पलट दिया है। एएमयू अल्पसंख्यक है या नहीं? इस पर फैसला करने के लिए अब तीन जजों की एक अलग बेंच गठित की जाएगी।

1967 में, सुप्रीम कोर्ट ने अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ के फैसले में कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि यह कानून द्वारा स्थापित किया गया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना पुराना रुख पलट दिया। सात-न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया कि सरकार द्वारा इसे विनियमित और संचालित करने के लिए लाए गए कानून के कारण कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का बहुमत वाला फैसला

सुप्रीम कोर्ट के बहुमत वाले फैसले में कहा गया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर तय किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को खारिज कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर तीन न्यायाधीशों की एक नियमित पीठ द्वारा निर्णय लिया जाएगा। पीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि कोई संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, यह देखने की जरूरत है कि संस्थान की स्थापना किसने की। फैसले के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने फैसले का स्वागत किया और आगे की कार्रवाई पर जोर दिया।

मुख्य न्यायाधीश का अंतिम कार्य दिवस

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। आज उनके काम का आखिरी दिन था। आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मामले की सुनवाई उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने की। जिसमें संजीव खन्ना, न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने अल्पसंख्यक दर्जा देने पर बेंच नियुक्त करने पर सहमति जताई। जबकि सूर्यकान्त, दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति। एससी शर्मा असहमत थे।

2006 में जब इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में हुई तो फैसला सुनाया गया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिस पर आज चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई की।

अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास क्या है?

यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी शुरुआत 1875 में हुई थी। भारत में उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटिश काल में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की भूमि पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। 1875 में सर सैयद ने मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए मुस्लिम एंग्लो-ओरिएंटल स्कूल की स्थापना की।

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उस समय निजी विश्वविद्यालयों को अनुमति नहीं थी। इसलिए विश्वविद्यालय की शुरुआत सबसे पहले एक स्कूल के रूप में की गई थी। इसके बाद 1920 में इसे कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया।