नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक ऐसा मामला सामने आया जिसको सुनकर आप चकित हो उठेंगे। दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत से धर्म की परिभाषा सुनिचित करने की मांग की। याचिकाकरता का कहना था कि ऐसा करने से कई तरह के विवाद पर विराम लग जाएगा। हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता की याकाहिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हम धर्म के विशेषज्ञ नहीं है और धर्म कि परिभाषा तय करना अदालत का काम भी नहीं है।
यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में मोदी सरकार ने फिर किया बड़ा बदलाव, ख़त्म किया एक और कानून
दरअसल, यह याचिका 87 साल के बुजुर्ग रमेशचंद्र विट्ठलदास सेठ ने दायर की और अपनी याचिका पर जिरह करने के लिए खुद अदालत में पेश हुआ। इस याचिका पर चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच सुनवाई कर रही थी।

सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि संविधान में धर्म की परिभाषा तय नहीं की गई है। लेकिन धर्म से जुड़े कई अनुच्छेद संविधान का हिस्सा हैं। बिना परिभाषा तय किए इन अनुच्छेदों का विशेष अर्थ नहीं रह जाता है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि धर्म की परिभाषा तय करना कोर्ट का काम नहीं है।
धर्म की परिभाषा
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि सभी धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक ही ईश्वर को मानते हैं। अगर धर्म की परिभाषा तय कर दी जाएगी तो हर तरह का विवाद खत्म हो जाएगा। आतंकवाद और परमाणु युद्ध का खतरा भी खत्म हो जाएगा। यहां तक कि पाकिस्तान को भी समझ में आ जाएगा कि गीता और कुरान एक ही हैं।
यह भी पढ़ें: शरद पूर्णिमा 31 को, व्यापारियों के लिये उत्तम रहेगा वर्ष
जजों ने इन दलीलों पर हैरानी जताते हुए कहा कि आप 87 साल के हैं। आप पूरा जीवन क्या करते रहे? यह बातें आपने पहले कहीं क्यों नहीं रखीं? इसके जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा कि मैं पिछले 50 साल से लोगों को धर्म के बारे में शिक्षित करता आ रहा हूं। मेरे अनुभव का लाभ उठाया जाए। इससे तमाम तरह के विवाद खत्म हो सकते हैं। हमारा महान भारत देश हमेशा के लिए सुरक्षित हो सकता है।
अगर आपको कोई बात रखनी है तो आपको सरकार के पास जाना चाहिए
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सब चाहते हैं कि हमारा महान देश हमेशा सुरक्षित रहे। लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि हम धर्म के विशेषज्ञ नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट या कोई भी हाई कोर्ट इस तरह के मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता। अगर आपको कोई बात रखनी है तो आपको सरकार के पास जाना चाहिए। कोर्ट ने रमेशचंद्र शेठ को सरकार को ज्ञापन सौंपने के लिए कहते हुए याचिका वापस लेने की सलाह दी। लेकिन याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वह सरकार को पहले ही ज्ञापन सौंप चुके हैं। आखिरकार कोर्ट ने यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर दिया कि वह याचिकाकर्ता की कोई भी मदद कर पाने में सक्षम नहीं है।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine