नई दिल्ली। हिमालय पर्वतमाला में बड़े भूकम्प आने की संभावना है। इसकी तीव्रता 8 या इससे अधिक रहन सकती है। जानकारों के मुताबिक यह बात एक अध्ययन में सामने आई है।
अध्ययन में इस बात का जिक्र किया गया है कि भविष्य में हिमालय पर्वतमाला में आने वाले भूकम्प 20वीं सदी में अलेउटियन सबडक्शन जोन में आए भकम्प के समान हो सकता है। जिसका विस्तार अलास्का की खाड़ी से सुदूर पूर्व रूस के कामचटका तक था। अध्ययन के लेखक स्टीवन जी वेस्नौस्की ने बताया कि हिमालय पर्वतमाला, पूर्व में अरुणांचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में पाकिस्तान तक अतीत में बड़े भूकम्प का स्त्रोत रही है।
दायरे में होंगे दिल्ली सहित अन्य कई शहर
भूकंप विज्ञानी एवं भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के प्राध्यापक सुप्रियो मित्रा ने इस बात का जिक्र किया कि अध्ययन पूर्व में किये गये अध्ययनों से मिलता जुलता है। उन्होंने बताया कि अध्ययन के मुताबिक हिमालय में स्थित भ्रंश आठ से अधिक तीव्रता वाला भूकंप ला सकता है। वेस्नौस्की ने कहा कि चंडीगढ़ और देहरादून तथा नेपाल के काठमांडू जैसे बड़े शहर हिमालय में आने वाले भूकंप के प्रभाव क्षेत्र के नजदीक हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के बड़े भूकंप के दायरे में हिमालय और दक्षिण में स्थित राजधानी दिल्ली भी आ सकती है।
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खबरों के मुताबिक बंगलुरू के जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर अडवांस साइंटिफिक रिसर्च के भूकंप वैज्ञानिक सी पी राजेंद्रन ने बताया है कि हिमालय के क्षेत्र में काफी तनाव जमा हो चुका है। जब यह निकलेगा तो 8.5 या उससे भी अधिक तीव्रता का भूकंप आएगा और यह भूकंप कभी भी आ सकता है। इस रिसर्च में भारतीय सीमा पर मौजूद नेपाल से सटे चोरगालिया और मोहाना खोला के आंकड़ों को शामिल किया गया है। शोधकर्तांओं का कहना है कि सन 1315 से 1440 के बीच 600 किमी के इलाके में भयंकर भूकंप आया था। 8.5 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आया था। इसके बाद हिमालय का यह हिस्सा 600-700 साल तक शांत रहा। जिसके कारण इसके भीतर काफी तनाव जमा हो गया है जो अब कभी भी बाहर आ सकता है। इस इलाके में काम करने वाले अमरीकी भूगर्मशास्त्री रोजर बिल्हम ने भी इस नए शोध का समर्थन किया है। दो तरह के भूकंप होते है एक जिनका असर भूकंप के केंद्र के 60-70 किमी तक ही होता है और एक जिनका असर भूकंप के केंद्र से 300 से 500 किमी तक होता है ऐसे भूकंप को रेलिग तरंगों वाला भूकंप कहते हैं। नए शोध से पता चलता है कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के कुछ इलाके भूकंप के तीव्र झटके के लिए तैयार हैं। 1950 से पहले इन इलाकों में कोई ऊंची ईमारत नहीं थी।
हिमालय और इसके आसपास ही क्यों आते हैं भूकंप
हिमालय के नीचे 300 मीटर की गहराई में काली मिट्टी है, जो कि प्रागैतिहासिक झील का अवशेष है, जिसकी वजह से भूकंप ज्यादा तीव्रता वाले आते हैं. अध्ययनों से यह जाहिर हुआ है कि यहां मिट्टी के द्रवीकरण की वजह से बड़ा भूकंप आने का खतरा बना रहता है।
क्यों सबसे खतरनाक है यह जोन
हिमालय पर्वत के भूकंप वाले जोन में रहने वाले ज्यादातर लोगों के घर पत्थरों से बने हैं। नेपाल के अलावा भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, उत्तर-पश्चिमी राज्य शामिल हैं। इसके अलावा तराई वाला भारतीय इलाका काफी घना बसा है। ऐसे में कोई बड़ा भूकंप आने की स्थिति में यहां नुकसान की आशंका ज्यादा होती है।
दो भूकंप जोन हैं भारत में
लगातार टक्कर से परतों की दबाव सहने की क्षमता खत्म होती जाती हैं। परतें टूटने के साथ उसके नीचे मौजूद ऊर्जा बाहर आने का रास्ता खोजती हैं। इस वजह से हिमालय क्षेत्र में भूकंप आता है। भारतीय उपमहाद्वीप को भूकंप के खतरे के लिहाज से सीसमिक जोन 2,3,4,5 जोन में बांटा गया है। पांचवा जोन सबसे ज्यादा खतरे वाला माना जाता है। पश्चिमी और केंद्रीय हिमालय क्षेत्र से जुड़े कश्मीर, पूर्वोत्तर और कच्छ का रण इस क्षेत्र में आते हैं।
भूकम्प
भूकम्प या भूचाल पृथ्वी की सतह के हिलने को कहते हैं। यह पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों की वजह से होता है। भूकम्प बहुत हिंसात्मक हो सकते हैं और कुछ ही क्षणों में लोगों को गिराकर चोट पहुंचाने से लेकर पूरे नगर को ध्वस्त कर सकने की इसमें क्षमता होती है।
भूकंप का मापन भूकम्पमापी यंत्र से किया जाता है, जिसे सीस्मोग्राफ कहा जाता है। एक भूकंप का आघूर्ण परिमाण मापक्रम पारंपरिक रूप से नापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है। 3 या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि 7 रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है।
पृथ्वी की सतह पर, भूकंप अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट करता है। जब एक बड़ा भूकंप उपरिकेंद्र अपतटीय स्थति में होता है, यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है, जो सूनामी का कारण है। भूकंप के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं।