हिंदू पंचांग में महाशिवरात्रि का पर्व हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का त्योहार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस साल महाशिवरात्रि दिनांक 18 फरवरी दिन शनिवार को है. पौराणिक कथा के अनुसार, चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था. वहीं भगवान भोलेनाथ का ये मंत्र ऊं नम: शिवाय, इस मंत्र के जाप से पृथ्वी, अग्नि, जल,आकाश और वायु जैसे पांच तत्व नियंत्रित किए जाते हैं. ये मंत्र बेहद मोक्षदायी माना जाता है. इस मंत्र में चार वेदों का सार है. इस मंत्र का एक-एक शब्द इतना ज्यादा प्रभावशाली है, कि अगर आप इसे गलत पढ़ते हैं, तो आपके ऊपर इसका गलत प्रभाव पड़ सकता है. इस स्तोत्र में पंचाक्षर जैसे (न,म,शि,व,य) की शक्ति का वर्णन किया गया है. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र को सच्चे मन से पढ़ता है, उसे सभी असंभव काम पूरे हो जाते हैं. अगर आप महाशिवरात्रि के दिन इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो आपको इसके कई गुना फल की प्राप्ति होगी. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में पंचाक्षर स्तोत्र के महत्व के बारे में बताएंगे, साथ ही इस दिन कौन से मंत्रों का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है.
जानिए क्या है पंचाक्षर स्तोत्र का महत्व
पंचाक्षर स्तोत्र के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो इस स्तोत्र को श्रद्धापूर्वक करता है, तो उससे भोलेनाथ बेहद प्रसन्न होते हैं. इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि ये स्तोत्र व्यक्ति की अकाल मृत्यु को भी टाल सकता है. इस स्तोत्र को नियमित रूप से करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है.इस स्तोत्र का पाठ करते समय कपूर और इत्र का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए
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इन स्तोत्र का नियमित रूप से करें जाप
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥1॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय॥5॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥6॥