उत्तर प्रदेश में बेहतर पुलिसिंग के लिए Police Commissionerate System लागू किया गया था। इस सिस्टम के आने के बाद यूपी लखनऊ, कानपुर और वाराणसी और गौतमबुद्धनगर में बेहतर कानून व्यवस्था होने का दावा किया गया था। इन शहरों में पुलिस आयुक्तालय प्रणाली लागू होने के साथ शीर्ष अधिकारियों ने जिला मजिस्ट्रेटों (डीएम) के बजाय इन जिलों में जिला कलेक्टरों (डीसी) को तैनात करने पर विचार करना शुरू कर दिया है। सूत्रों की माने तो इस व्यवस्था के लागू होने के बाद जिले के डीएम के अधिकारों में कुछ कटौती की जा सकती है।
इस व्यवस्था के तहत शस्त्र अधिनियम सहित कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों के तहत पुलिस अधिकारियों को पहले से ही मजिस्ट्रियल शक्तियां देने के बाद शक्तियों को स्थानांतरित करने पर विचार कर रहे हैं। अब तक, लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में आयुक्तालय प्रणाली के आंशिक कार्यान्वयन के बाद भी इन प्रावधानों के तहत डीएम के पास शक्तियाँ थीं क्योंकि पूरे जिले आयुक्तालय में शामिल नहीं थे और ग्रामीण क्षेत्रों को सीधे डीएम के अधीन सामान्य जिले के रूप में माना जाता था।
डीएम की बजाए डीसी बनाने की तैयारी
हालांकि जनवरी 2020 में यूपी में इस सिस्टम के लागू होने के बाद से पूरा गौतमबुद्धनगर जिला पुलिस कमिश्नरेट के अधीन था, लेकिन वहां डीएम का पद अब भी मौजूद है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि अधिकारी इन चार जिलों में डीएम के बजाय जिला कलेक्टरों की पोस्टिंग पर विचार कर रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार ने 3 नवंबर को लखनऊ, कानपुर और वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्रों को पुलिस आयुक्तालय में शामिल करने की मंजूरी दे दी थी।
यूपी के चार शहरों में लागू है पुलिस कमिश्नर प्रणाली
लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में नई पुलिस आयुक्ता प्रणाली के तहत यह नया अधिकार क्षेत्र लागू हो गया है। इन जिलों के उपायुक्तों के पास अतीत की तरह कानून और व्यवस्था की स्थिति पर अंतिम निर्णय, शस्त्र अधिनियम के तहत शस्त्र लाइसेंस जारी करने की शक्ति और अन्य मजिस्ट्रियल शक्तियों जैसे कई शक्तियों के बजाय राजस्व संग्रह, प्रोटोकॉल से संबंधित कार्य करने की संभावना थी।
तीन नवंबर को तीन शहरों की सीमााओं में हुआ था विस्तार
दरअसल 3 नवंबर को यूपी कैबिनेट ने लखनऊ, वाराणसी और कानपुर जिलों के सभी पुलिस स्टेशनों को पुलिस कमिश्नरेट में शामिल करने की मंजूरी दी थी ताकि जिलों में एकरूपता लाई जा सके। इससे पहले, लखनऊ के छह, वाराणसी के 12 और कानपुर के 14 थानों को पुलिस आयुक्तों के दायरे से बाहर रखा गया था और एसपी रैंक के एक अधिकारी द्वारा पर्यवेक्षण किए गए अलग पुलिस जिलों के रूप में माना जाता था।