प्रिवेंशन ऑफ मनी-लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की वैधता को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 241 याचिकाएं डाली गई थीं। बुधवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एक्ट की संवैधानिक वैधता को जायज करार दिया।
हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि आर्थिक अपराधों के लिए सख्त जमानत शर्तों को लागू करने में सरकार की रुचि है। कोर्ट ने यह भी माना कि कल्पना के किसी भी हिस्से से यह नहीं कहा जा सकता है कि जमानत की शर्तों को कठोर रखना देश हित में नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा PMLA को वैध करार दिए जाने का मतलब, ED को छापेमारी, पूछताछ और गिरफ्तारी का लाइसेंस मिलना है। अदालत ने कहा है कि मनी-लॉन्ड्रिंग कानून के तहत जमानत को लेकर जो कठोर शर्तें रखी गई हैं, वे गैर कानून नहीं हैं और न ही मनमाना हैं।
कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलटा
नवंबर 2017 में निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने दोहरी जमानत की शर्तों को असंवैधानिक माना था। जस्टिस रोहिंटन नरीमन और संजय किशन कौल की पीठ ने पीएमएलए के तहत जमानत के ‘ट्विन टेस्ट’ को असंवैधानिक घोषित किया था क्योंकि यह स्पष्ट रूप से मनमाना था।
कोर्ट ने कहा था, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धारा 45 एक कठोर प्रावधान है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण करने वाली धारा को लागू करने से पहले, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार इसका इस्तेमाल गंभीर अपराध से निपटने के लिए ही करेगी। धारा 45 के प्रावधानों को केवल अत्यंत जघन्य प्रकृति वाले अपराधों से निपटने के लिए बरकरार रखा गया है।” कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा था, आतंकवाद विरोधी कानूनों जैसी असाधारण परिस्थितियों में कड़ी जमानत की शर्तें लगाई जा सकती हैं।
अब कोर्ट ने खुद पीएमएलए की संवैधानिकता का बचाव करते हुए दोहरी जमानत की शर्तें लगाई है। जिस आधार पर प्रावधान को असंवैधानिक घोषित किया गया था, अब उसे पलटते हुए प्रावधान को पुनर्जीवित किया गया है।
‘मनी लॉन्ड्रिंग गंभीर अपराध’
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है, ”अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाले मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों के परिणामों की गंभीरता को देखते हुए, रोकथाम और विनियमन के लिए एक विशेष प्रक्रियात्मक कानून बनाया गया है। इसे सामान्य अपराधियों से अलग वर्ग के रूप में माना गया है। मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध को “दुनिया भर में” अपराध का एक गंभीर रूप माना गया है। इसलिए यह अपराध का एक अलग वर्ग है जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग के खतरे से निपटने के लिए प्रभावी और कड़े उपायों की आवश्यकता होती है।”