कैसे एकनाथ खडसे से पंकजा मुंडे तक कई नेता हुए साइडलाइन और देवेंद्र फडणवीस बने बॉस

उद्धव ठाकरे का इस्तीफे के बाद 51 साल के देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। खबर है कि 2 जुलाई से पहले उनकी ताजपोशी हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो मराठी बहुल राज्य में ब्राह्मण चेहरा तीसरी बार बागडोर संभालेगा। मराठा और ब्राह्मणों के बीच सत्ता की जंग को मराठा साम्राज्य के समय से भी जोड़कर देखा जाता है। इसके बावजूद फडणवीस ने तीन दशकों में एक पार्षद से नागपुर के सबसे कम उम्र के मेयर और राज्य के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है। इस दौरान उनकी राजनीति के तरीके की चर्चा राज्य ही नहीं केंद्र में भी की जाती है।

गुटबाजी से फायदा मिला और चतुराई से तरक्की

बात 12 अप्रैल 2013 की है, जब फडणवीस को महाराष्ट्र भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस दौरान यह पद बल्लारपुर विधायक सुधीर मुनगंटीवार संभाल रहे थे, जिनके दूसरे कार्यकाल का विरोध गोपीनाथ मुंडे कर रहे थे। खास बात है कि यह है कि उस दौरान भाजपा के दो गुट सक्रिय थे एक की कमान मुंडे, तो दूसरे की कमान मौजूदा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हाथों में थी। कहा गया कि फडणवीस को प्रमुख बनाते ही दोनों गुटों तनतनी भी खत्म हो गई थी।

उन्हें मुंडे का करीबी माना जाता था, लेकिन उन्होंने कभी भी गडकरी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। बल्कि वह अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले गडकरी के ही आवास पर पहुंचे और आशीर्वाद लिया। उस दौरान विनोद तावड़े का नाम भी आगे था, लेकिन पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने फडणवीस को कमान सौंपी।

कभी नहीं खुलकर उठाई पद की मांग

जानकार बताते हैं कि अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीता। साथ ही उन्होंने कभी भी अपनी महत्वकांक्षाओं को खुलकर नहीं रखा और न ही कभी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की। कहा जाता है कि इससे उलट एकनाथ खडसे जैसे नेता सीएम बनने के लिए दावे पेश करते रहे। इसके अलावा वह पार्टी में मुंडे और गडकरी गुट को भी साथ लेकर चले।

मोदी के भी चहेते

जानकार फडणवीस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को देखते हैं। माना जाता है कि मोदी भी उनकी बातों को सुनते हैं। साथ ही वह केंद्र के जरिए राज्यों के लिए कई परियोजनाएं और प्रस्ताव लेकर आए हैं। वहीं, साल 2014 चुनाव में पीएम मोदी को राज्य के लिए नए चेहरे की तलाश थी और विदर्भ से आने वाले ब्राह्मण फडणवीस ने यह जरूरत पूरी की। नागपुर नगर निगम के मेयर से लेकर विधानसभा में चुने जाते तक फडणवीस का सियासी कद लगातार बढ़ा है। इसमें उनकी साफ छवि और नागपुर से करीबी रिश्ते भी बड़ा कारण है।

फडणवीस के करियर की झलक

फडणवीस को एक अनुभवी जन प्रतिनिधि माना जाता है। साथ ही उन्हें कई अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। इनमें कॉमनवेल्थ पारलियामेंट्री एसोसिएशन की तरफ से मिला ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ का पुरस्कार भी शामिल है। बहरहाल, उनके सियासी करियर की शुरुआत को 90 के दशक से देखा जा सकता है।

22 साल की उम्र में पार्षद बने फडणवीस 27 वर्ष की आयु में मेयर बन गए थे। उन्होंने साल 1999 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता। दिवंगत MLC गंगाधर राव के बेटे फडणवीस विदर्भ से आने वाले राज्य के चौथे मुख्यमंत्री हैं।

फडणवीस बनाम खडसे भी समझें

महाराष्ट्र में फिलहाल एकनाथ नाम की चर्चा है। हालांकि, इस बार चर्चा का केंद्र एकनाथ शिंदे हैं। लेकिन अगर फडणवीस के करियर ग्राफ पर बात करें तो ओबीसी चेहरा एकनाथ खडसे का नाम का जिक्र मिलता है। सड़क हादसे में निधन से पहले मुंडे को मुख्यमंत्री उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन बाद में कहा जाने लगा कि जिम्मेदारी मुंडे के करीबी खडसे को मिल सकती है।

इससे विपरीत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने युवा चेहरे और कम अनुभवी फडणवीस का नाम बढ़ा दिया। कहा गया कि मुंडे की गैर मौजूदगी में भाजपा किसी गुट का समर्थन नहीं करना चाहती और एक सामान्य नाम की घोषणा कर दी। खास बात यह है कि खडसे के सियासी कद से वाकिफ भाजपा ने भी उन्हें कम नहीं आंका और फडणवीस कैबिनेट में उन्हें दूसरे नंबर का नेता बनाया।

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इसके बाद खडसे का नाम कई विवादों में आया। इसी के बीच उन्होंने मंत्री बपद से इस्तीफा दे दिया। हाल ऐसे हुए कि जिस सीट पर वह 1980 के समय से संभाल रहे थे, पार्टी ने उन्हें वहां से भी टिकट नहीं दिया। साथ ही फडणवीस सरकार ने भी उनके खिलाफ कई जांच शुरू कर दी थी।