प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र दिवस का जिक्र करते हुये कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय से ही भारत इससे जुड़ रहा है। भारत ने आजादी से पहले 1945 में ही संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। उन्होंने कहा कि इस धरती को एक बेहतर और सुरक्षित ग्रह बनाने में भारत का योगदान विश्व के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र से जुड़ा एक अनोखा पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र का प्रभाव और उसकी शक्ति बढ़ाने में भारत की नारी शक्ति ने बड़ी भूमिका निभाई है। 1947-48 में जब मानवाधिकार का यूनिवर्सल डिक्लेरेशन तैयार हो रहा था तो उसमें लिखा जा रहा था- “ऑल मेन आर क्रियेटेड इक्वल”, लेकिन भारत के प्रतिनिधि ने इसपर आपत्ति जताई और फिर यूनिवर्सल डिक्लेरेशन में लिखा गया- “ऑल ह्यूमन बीइंग आर इक्वल।” आगे उन्होंने कहा कि हंसा मेहता ही वो प्रतिनिधि थीं, जिनकी वजह से यह संभव हो पाया।
अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 82वीं कड़ी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे कहा कि लैंगिक समानता भारत की सदियों पुरानी परंपरा है। इसी संदर्भ में लक्ष्मी मेनन का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि लक्ष्मी मेनन ने लैंगिक समानता के मुद्दे पर जोरदार तरीके से अपनी बात रखी थी।
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हमें इस बात का गर्व है कि भारत 1950 के दशक से लगातार संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा रहा है। गरीबी हटाने, पर्यावरण परिवर्तन और श्रमिकों से संबंधित मुद्दों के समाधान में भी भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
आगे उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त योग और आयुष को लोकप्रिय बनाने के लिए भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर काम कर रहा है। मार्च, 2021 में डब्ल्यूएचओ ने घोषणा की थी कि भारत में पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक वैश्विक केंद्र स्थापित किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र की चर्चा करते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी स्मरण किया। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के बारे में बात करते हुए मुझे अटलजी के शब्द भी याद आ रहे हैं। 1977 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को हिंदी में संबोधित कर इतिहास रच दिया था।
नौसेना अफसर का दावा- 1965 में ही बन गया था पाकिस्तान को दो टुकड़े करने का प्ला्न..
अपने संबोधन के दौरान उन्होंने ‘मन की बात’ के श्रोताओं को अटल बिहारी वाजपेयी के उस संबोधन का एक अंश भी सुनाया जिसमें उन्होंने कहा था- “हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज, वस्तुत: हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ति देने में प्रयत्नशील हैं।”
उल्लेखनीय है कि 24 अक्टूबर को ‘सयुंक्त राष्ट्र दिवस’ मनाया जाता है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस बात का स्मरण कराया।