अफगानिस्तान में बदले हालात के बाद से शायर मुनव्वर राणा समेत तमाम मुस्लिम नेताओं में तालिबान और उसकी कार्रवाई को वाजिब ठहराने की होड़ मची है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ऐसे नेताओं की मुखालफत में उतर आया है। तालिबान के समर्थन में उतरे नेताओं की तीखी आलोचना करते हुए मंच ने कहा है कि ऐसे लोग इस्लाम के पैरोकार नहीं हो सकते। क्योंकि वे खुदा के रास्ते पर चलने वाले इस्लाम में विश्वास नहीं करते।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने दिया बड़ा बयान
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर तालिबान के लिए कसीदे पढ़ने वाले नेताओं की मजम्मत करते हुए कहा कि भारत के कुछ मुस्लिम नेताओं ने जैसे- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी, शायर मुनव्वर राणा, समाजवादी पार्टी के संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी सरीखे नेताओं ने तालिबान को सही ठहराया है।
मंच ने कहा कि यह शर्म की बात है कि इन नेताओं ने तालिबानियों की तुलना देश के स्वतंत्रता सेनानियों से की है। ऐसे लोग इस्लाम के हरगिज पैरोकार नहीं हो सकते। मंच ने अपील की कि इन जैसे लोगों की निंदा भर करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि इनको ठुकरा देना ही वाजिब होगा।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने आगे कहा कि अफगानिस्तान में मारने वाला और मरने वाला दोनों ही अफगान मुसलमान हैं। अफगानी मुसलमान सही इस्लाम को मानकर रसूल और कुरान के सिद्धांतों पर चलने वाला है, वह तालिबानी मानसिकता वाले कट्टरपंथी मुसलमानों के हाथों प्रताड़ित हो रहा है। हम भारत के मुसलमान सही इस्लाम में, रसूल में, कुरान और हदीस पर विश्वास रखते हुए यह मानते हैं कि इस्लाम सबकी सलामती, खुशहाली, भाईचारा तथा महिलाओं की इज्जत चाहता है।
मंच ने तालिबानियों की तीखी मजम्मत करते हुए कहा कि जो तालिबानी अफगानिस्तान में महिलाओं पर जुल्म कर रहे हैं, निरपराध बेकसूर लोगों को मार रहे हैं, वे खुदा से और रसूल से दगा करने वाले लोग हैं। उनका इस्लाम शरीयत वाला नहीं हैं। अफगानिस्तान में बेकसूरों पर जो जुल्म और सितम हो रहा है, वह इस्लाम के नाम पर एक बदनुमा दाग है।
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मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि इस्लाम के जितने फिरकों के मुसलमान आज दुनिया में अगर कही सुरक्षित है, तो वह भारत में है, क्योंकि भारत का इस्लाम शांति, सद्भाव और भाईचारा बनाये रखने वाला है। आज इसी इस्लाम को स्थापित करने की जरूरत है।
मंच ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि भारत सरकार ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी हैं और जो भी फंड उस देश के विकास कामों के लिए भारत से जाता था, उस पर रोक लगायी हैं।
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