महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का तालमेल इसी बात पर टूटा था। शिव सेना के नेता कह रहे थे कि बंद कमरे में अमित शाह ने वादा किया था कि मुख्यमंत्री का पद ढाई-ढाई साल के लिए दोनों पार्टियों के बीच बंटेगा। दूसरी ओर भाजपा ने इससे इनकार किया, जिसके बाद शिव सेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बनाई। पिछले दिनों फिर ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात अचानक उभरी, जिस पर शिव सेना ने कहा कि एनसीपी के साथ ऐसी कोई बात नहीं हुई है और पांच साल तक शिव सेना का ही मुख्यमंत्री रहेगा।
अब एक बार फिर ढाई साल का पेंच सामने आया है। अगले साल अप्रैल में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई साल पूरे करेंगे। उसके बाद क्या होगा, इसका अंदाजा किया को नहीं है। जानकार सूत्रों का कहना है कि उसके बाद वे अगले ढाई साल तक भाजपा के समर्थन से भी मुख्यमंत्री रह सकते हैं या उनके समर्थन से अगले ढाई साल के लिए भाजपा का मुख्यमंत्री बन सकता है। हालांकि शिव सेना के नेता इससे इनकार कर रहे हैं लेकिन अंदरखाने इस बात की चर्चा है और शिव सेना के नेता गठबंधन बदल से इनकार नहीं कर रहे हैं।
असल में अगले साल के शुरू में बृहन्नमुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव होने वाले हैं। यह चुनाव बाकी पार्टियों के मुकाबले शिव सेना के लिए ज्यादा अहम है। शिव सेना के नेता इस बात का आकलन करने में लगे हैं कि बीएमसी चुनाव में उनके लिए कौन सा गठबंधन फायदेमंद रहेगा। उनका अंदाजा है कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ होने के बावजूद इस बात की संभावना कम है कि मुस्लिम मतदातान शिव सेना को वोट देंगे। आखिर शिव सेना ने हिंदुत्व वाली अपनी पोजिशनिंग छोड़ी नहीं है और अब भी उसके नेता अयोध्या में बाबरी ध्वंस का श्रेय लेते रहते हैं। दूसरे, उनके बारे में यह धारणा है कि वे भाजपा के साथ जा सकते हैं। इसलिए मुस्लिम मतदाता उनको वोट करेंगे इसमें संदेह है।
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शिव सेना प्रवासी वोट को लेकर भी बहुत भरोसे में नहीं है। इसलिए अगर पार्टी को लगता है कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ होने के बावजूद मुस्लिम और प्रवासी वोट नहीं मिलेंगे तो फिर साथ रहने का क्या मतलब है! ध्यान रहे बीएमसी के इलाके में मुस्लिम और प्रवासी मतदाता बड़ी संख्या में हैं। तभी संभव है कि चुनाव से पहले गठबंधन बदल हो। भाजपा के साथ होने से शिव सेना को अपने कट्टर हिंदू और मराठी वोट के पूरी तरह से साथ रहने का भरोसा होता है। बीएमसी के पिछले चुनाव में शिव सेना और भाजपा के बीच दो-तीन सीटों का ही अंतर था। अगर शिव सेना महाविकास अघाड़ी में बनी रहती है को कट्टर हिंदू वोट पूरी तरह से भाजपा के साथ जाएग, जिसका नुकसान शिव सेना को हो सकता है। सो, बीएमसी चुनाव की चिंता में शिव सेना अभी से पोजिशनिंग में लगी है।