प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35ए हटाए जाने के करीब दो वर्ष बाद राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया को बहाल करने की महत्वपूर्ण पहल की है। इसके तहत राज्य की मुख्यधारा के राजनीतिक दल के नेता गुरुवार यानी 24 जून को प्रधानमंत्री के साथ बैठक करेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से केंद्र शासित प्रदेश के प्रमुख नेताओं को बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है, जिसमें से अधिकतर नेता बैठक में भाग लेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला राजधानी पहुंच गए हैं। जबकि अन्य नेता भी देर-सबेर दिल्ली पहुंचेंगे।
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने जिन 14 नेताओं को बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रण भेजा है, उनमें कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, ताराचंद, गुलाम अहमद मीर, नेशनल कांफ्रेंस के डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी, माकपा के एमवाई तरिगामी, पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन। जम्मू क्षेत्र से रविन्द्र रैना, निर्मल सिंह और कवीन्द्र गुप्ता के साथ पैंथर पार्टी के प्रो. भीम सिंह को आमंत्रित किया गया है।
बैठक जनसंघ के अध्यक्ष स्व. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के अगले दिन हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मुखर्जी को देश की एकता और अखंडता के प्रणेता के रूप में याद किया है। डॉ. मुखर्जी ने ही जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघ में पूर्ण विलय का अभियान छेड़ा था, जिसमें उनकी शहादत हुई थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही डॉ. मुखर्जी के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए पांच अगस्त 2019 में संसद में अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने की पहल की थी। संसद में इस सीमावर्ती राज्य का पुनर्गठन करने संबंधी जो विधेयक पारित किया था, उसके तहत राज्य को विभाजित कर जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख संघ शासित क्षेत्र का गठन किया गया।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक का कोई घोषित एजेंडा नहीं है। लेकिन, स्पष्ट है कि केंद्र सरकार राज्य में स्थिति ठीक होने के बाद सामान्य राजनीतिक हालात बनाने के लिए कुछ फैसले कर सकती है। इसके पहले वह राज्य की राजनीति से जुड़े विभिन्न पक्षों की राय और उनकी आशा और अपेक्षाओं की जानकारी हासिल करना चाहती है।
जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने के फैसले को रद्द कर राज्य में पांच अगस्त 2019 के पहले की स्थिति को बहाल करने की मांग कर रहे हैं।
इन नेताओं ने अपनी नजरबंदी समाप्त होने के बाद 04 अगस्त 2020 को एक बैठक की थी। इस बैठक के बाद इन दलों के नेताओं ने संयुक्त रूप से एक घोषणा-पत्र जारी किया था, जिसे ‘पीपुल्स एलायंस के घोषणा पत्र’ का नाम दिया गया था। इसमें नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), अवामी नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेताओं ने हस्ताक्षर किए थे। कांग्रेस ने इस घोषणा-पत्र के बारे में अस्पष्ट नीति अपनाई थी।
पिछले दो वर्ष के दौरान सिंधु नदी में बहुत पानी बह चुका है और विभिन्न राजनीतिक दल इस हकीकत से वाकिफ हैं कि समय की सीढ़ी को पीछे नहीं मोड़ा जा सकता। कांग्रेस की ओर से इस बैठक में भाग लेने वाले पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद का कहना है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना बैठक का मुख्य एजेंडा होगा। स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा था कि राज्य में आतंकवाद और अलगाववाद पर काबू पाने के बाद जम्मू-कश्मीर को फिर पूर्ण राज्य बनाने को लेकर केंद्र सरकार खुले मन से विचार करेगी।
कांग्रेस ने संसद में विधेयक का विरोध किया था, लेकिन बाद में उसने अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली की सीधे तौर पर मांग करने की बजाय केवल इतना कहा था कि वह इस मुद्दे पर पुनर्विचार करेगी।
अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं, दलितों और अन्य उपेक्षित वर्गों से संबंधित कानूनों को अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर पर भी लागू कर दिया। शरणार्थियों सहित दशकों से जम्मू-कश्मीर के नागरिक होने का दर्जा दिए जाने की प्रतीक्षा कर रहे लोगों को उनके अधिकार दिए गए। साथ ही महिलाओं को दूसरे राज्यों में विवाह करने पर भी राज्य में भू-संपत्ति के अधिकार दिए गए।
यह भी पढ़ें: चिदंबरम के बयान पर जेपी नड्डा ने लगाई पूरी कांग्रेस पार्टी को लताड़, याद दिलाया साल 2009..
पिछले दो वर्षों के दौरान राज्य में आए परिवर्तन को केंद्र सरकार ने देश विदेश में बड़े बदलाव के रूप में प्रचारित किया। संघ शासित क्षेत्र के उपराज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा ने राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सक्रिय बनाने तथा विकासपरक गतिविधियों को गति देने के लिए सक्रिय प्रयास किये। उनके अगुवाई में स्थानीय निकायों के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सफल हुए, जिसमें श्रीनगर और जम्मू केंद्रित राजनीति के समानांतर स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को जीवंत करने का काम किया गया।
पड़ोसी देश पाकिस्तान की हर कोशिशों के बावजूद राज्य में हालात बिगड़े नहीं, बल्कि निरंतर सामान्य होते चले गए। कानून व्यवस्था के लिए लगाए गए प्रतिबंध भी समाप्त हो गए तथा राजनीतिक नेताओं को पहले जैसी सक्रियता की छूट मिल गई।