सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मराठा कोटा मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि आखिर नौकरियों और शिक्षा में कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बैंच ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वकील मुकुल रोहतगी से स्पष्ट रूप से कहा कि कोटा को खत्म करने के मंडल के फैसले को बदली परिस्थियों में फिर से देखने की जरूरत है।
वहीं महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा कि बदली हुई परिस्थितियों में आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए और मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था।
उन्होंने कहा कि कोटे की सीमा तय करने पर मंडल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में फिर से विचार करने की आवश्यकता है। अब इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होगी। गुरुवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा था कि संविधान में 102वां संशोधन राज्य विधानसभाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) का निर्धारण करने वाले कानून बनाने से वंचित नहीं करता है और उनके लिए लाभ प्रदान करता है।
मालूम हो कि संविधान में 102वां संशोधन कर उसमें अनुच्छेद 338बी को जोड़ा गया था, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा सामाजिक और राजनीतिक रूप से बेहद प्रबल रहे हैं यहां तक की महाराष्ट्र में 40 प्रतिशत सांसद और विधायक इसी समुदाय से हैं। इसके बावजूद यह कहना कि वो पीछे रह गए हैं पूरी तरह अन्यापूर्ण है।
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मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार ने भी कमजोर तबके के लोगों (EWS) को 10 फीसदी आरक्षण दिया है जो आरक्षण की 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है। इस पर पांच जजों की बैंच ने कहा कि यदि 50 फीसदी की सीमा का कोई मतलब ही नहीं है तो समानता की क्या अवधारणा रह जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि हमें इससे निपटना होगा। आखिर कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण चलता रहेगा।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार पर मराठा आरक्षण लागू किए जाने के लिए राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है और सरकार जल्द से जल्द इस मामले का हल चाहती है।