दिल्ली हाईकोर्ट ने गणतंत्र दिवस की घटना के सिलसिले में कथित तौर पर अवैध रूप से हिरासत में लिये गए लोगों को तुरंत छोड़े जाने का निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि आरोपों और एफआईआर को जाने बिना रिहा करने का आदेश नहीं दे सकते हैं।

अदालत ने सुनाया फैसला
अदालत ने कहा कि जिनका गायब होने का दावा है, उनके परिवार की ओर से भी कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया है। याचिका लॉ ग्रेजुएट हरमन प्रीत सिंह ने दायर किया था। याचिका में 26 जनवरी की घटना के बाद कथित रूप से गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिये गए लोगों को तत्काल रिहा करने की मांग की गई थी।
अदालत में दायर याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता को अखबार और मीडिया की खबरों और अपने व्यक्तिगत स्रोतों से पता चला कि सिंघु बार्डर, टिकरी बार्डर और गाजीपुर बार्डर पर बिना कोई एफआईआर किए ही दिल्ली पुलिस ने कई लोगों को अवैध तरीके से हिरासत में ले लिया । ऐसा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
याचिका में 15 लोगों के नाम दिए गए थे, जो 26 और 27 जनवरी के बीच या तो गायब हो गए या उन्हें हिरासत में लिया गया। इस घटना के चार-पांच दिनों के बाद भी हिरासत की वजह नहीं बताई गई। याचिका में कहा गया था कि दिल्ली पुलिस ने 27 जनवरी को मीडिया को बताया कि उसने दो सौ से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है और 22 एफआईआर दर्ज की हैं।
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अदालत में दायर इस याचिका में कहा गया था कि दिल्ली पुलिस ने लोगों को गिरफ्तार करते समय अरेस्ट मेमो पर हिरासत में लेने वाले किसी रिश्तेदार का हस्ताक्षर नहीं कराया है और न ही उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया है।
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